Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-७. ३४६] सत्तमो महाधियारो
[७१५ पंचविहत्ते इच्छियपरिरयरासिम्मि होदि जं लद्धं । सा तावखेत्तपरिही' बाहिरमग्गम्मि दुमणिठिदसमए ॥ छच्च सहस्सा तिसया चउवीसं जोयणाणि दोणि कला । पंचहिदा मेरुणगे तावो बाहिरपहट्ठिदक्कम्मि ॥
पंचत्तीससहस्सा पणसय बावण जोयणा अंसा । अहिदा खेमोवरि तावो बाहिरपहट्रिदक्कम्मि ॥ ३४६
विशेष- सूर्यके विवक्षित वीथीमें स्थित होनेपर उस समय जितने मुहूर्तोका दिन हो . उतने मुहूर्तोसे ( तिमिरक्षेत्रके लिये रात्रि मुहूोसे ) विवक्षित परिधिप्रमाणको गुणा करके प्राप्त राशिमें साठ मुहूर्ताका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना उस परिधिमें तापक्षेत्रका प्रमाण होता है । प्रकृतमें विस्तार भयसे जिन परिधियोंमें तापक्षेत्रका प्रमाण नहीं कहा गया है उनमें भी इस सामान्य नियमके अनुसार उक्त प्रमाणको ले आना चाहिये।
उदाहरण- जब सूर्य तृतीय वीथीमें स्थित रहता है तब सब परिधियोंमें दिनका प्रमाण १७५१ मुहूर्त होता है । उस समय लवणसमुद्रके छठे भागमें तापक्षेत्रका प्रमाण इस प्रकार होगा-- ल. स. के छठे भागमें परिधिप्रमाण ५२७०४६; १७६१ = १६१४; ६० = ३६६०; गुणकार व भागहारको दोसे अपवर्तित करनेपर ५२७०४६ ४ ५४७ = २८८२९४१६२, २८८२९४ १६२ १८३० = १५७५३७१४५३ आतपक्षेत्र ( देखो गा. नं. ३४२)।
इच्छित परिधि राशिमें पांचका भाग देगेपर जो लब्ध आवे उतनी सूर्यके बाह्य मार्गमें स्थित रहते समय आतपक्षेत्रकी परिधि होती है ॥ ३४४ ॥ इच्छित मेरुपरिधि ३१६२२ ५ = ६३२४३ मेरुके ऊपर आतपक्षेत्रका प्रमाण ।
सूर्यके बाह्य पथमें स्थित होनेपर मेरु पर्वतके ऊपर तापक्षेत्रका प्रमाण छह हजार तीन सौ चौबीस योजन और पांचसे भाजित दो कला अधिक रहता है ॥ ३४५ ॥ ६३२४३ ।
सूर्यके बाह्य पथमें स्थित होनेपर क्षेमा नगरीके ऊपर तापक्षेत्र पैंतीस हजार पांच सौ बावन योजन और योजनके आठवें भागप्रमाण रहता है ॥ ३४६ ॥ ३५५५२ ।
१६ ब तववेत्तापरिही. २६ ब अस्स. .
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