Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-७. ३६८] सत्तमो महाधियारो
[७१९ छच्च सहस्सा तिसया चउवीसं जोयणाणि दोण्णि कला । मेरुगिरितिमिरखेत्तं आदिममग्गट्ठिदे तवणे ॥३६३
पणतीससहस्सा पणसयाणि बावण्णजोयणा अंसा । अहिदा खेमाए तिमिरखिदी पढमपहठिदपयंगे ॥३६४
तियअट्टणवतिया अंककमे सगदुगंस चालदिदा । खेमपुरीतमखेत्तं दिवायरे पढममग्गठिदे ॥ ३६५
३८९८३ | २० |
एक्कत्तालसहस्सा णवसयचालीस जोयणाणि कला । पणतीस तिमिरनेत्तं रिट्टाए पढमपहगददिणेसे।
बावत्तरि तिसयाणिं पणदालसहस्स जोयणा अंसा । सत्तरस अरिट्टपुरे तमखेत्तं पढमपहसूरे ॥ ३६७
अत्तालसहस्सा तिसया उणतीस जोयणा अंसा । पणुवीसं खग्गाए बहमज्झिमपणिधितमखेत्तं ॥ ३६८
४८३२९ | १०|
सूर्यके आदि मार्गमें स्थित होनेपर मेरुपर्वतके ऊपर तिमिरक्षेत्रका प्रमाण छह हजार तीन सौ चौबीस योजन और दो भाग अधिक रहता है ॥ ३६३ ॥ ६३२४६ ।
पतंग अर्थात् सूर्य के प्रथम पथमें स्थित होनेपर क्षेमा नगरीमें तिमिरक्षेत्र पैंतीस हजार पांच सौ बावन योजन और एक योजनके आठवें भागप्रमाण रहता है ॥ ३६४ ॥
३५५५२१ । ___ सूर्यके प्रथम मार्गमें स्थित होनेपर क्षमपुरीमें तमक्षेत्र तीन, आठ, नौ, आठ और तीन, इन अंकोंके क्रमसे अड़तीस हजार नौ सौ तेरासी योजन और सत्ताईस भागप्रमाण रहता है ॥ ३६५ ॥ ३८९८३४ ।
सूर्यके प्रथम पथको प्राप्त होनेपर अरिष्टा नगरीमें तिमिरक्षेत्र इकतालीस हजार नौ सौ चालीस योजन और पैंतीस कलाप्रमाण रहता है ॥ ३६६ ॥ ४१९४०४५।
सूर्यके प्रथम पथमें स्थित होने पर अरिष्टपुरमें तमक्षेत्र पैंतालीस हजार तीन सौ बहत्तर योजन और सत्तरह भागमात्र रहता है ॥ ३६७ ॥ ४५३७२४ ।
खड्गा नगरीके बहुमध्यम प्रणिधि भागमें तमक्षेत्र अड़तालीस हजार तीन सौ उनतीस योजन और पच्चीस भागमात्र रहता है ॥ ३६८ ॥ ४८३२९२५ ।
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