Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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त्रिलोकप्रज्ञप्तिको अन्य ग्रन्थोंसे तुलना १०२३ ) में दी गई है। प्रवचनसारोद्धारकी टोकामें भी वह इसी रूपमें पायी जाती है। .
(५) त्रिलोकप्रज्ञप्तिमें परमाणुका खरूप बतलानेके लिये जो प्रथम महाधिकारमें ९६ वी गाथा आयी है वह कुछ परिवर्तित रूपमें यहां भी पायी जाती है । यथा
सत्येण सुतिक्खेण वि छत्तुं भेत्तं च जं किर न सक्का ।
तं परमाणुं सिद्धा वयंति आई पमाणाणं ।। १३९०॥ यह अनुयोगद्वारसूत्र ( सूत्र १३३, गा. १०० ) में भी इसी रूपमें उपलब्ध होती है।
विशेषता- (१) त्रिलोकप्रज्ञप्ति (२-२९१ ) में नरकसे निकले हुए जीवोंके केशव, बलभद्र और चक्रवर्ती होनेका निषेध किया है। परन्तु यहाँ उसका स्पष्टतया विधान पाया जाता है । यया
पढमाओ चक्कवट्टी बीयाओ राम-केसवा इंति ।
तम्चाओ बरहंता तहऽतकिरिया चउत्पीओ ॥ १०८८ ॥
षट्खण्डागम व राजवार्तिक आदि अन्य दिगम्बर प्रन्धोंमें सातवीं पृथिवीसे निकलकर सम्यक्त्व प्राप्त कर सकनेका निषेध होने पर भी त्रिलोकप्रज्ञप्ति (२-२९२ ) में उक्त जीवोंके उसकी योग्यता प्रगट की गई है। यह योग्यता प्रवचनसारोदारमें भी बतलाई गई है। यथा
तिमु तित्थ चउत्थीए केवलं पंचमीइ सामन्नं ।
छट्ठीए विरइऽविरई सत्तमपुढवीइ सम्मत्तं ॥ १०८७.
(२) त्रिलोकप्रज्ञप्तिमें उत्सागुलका स्वरूप इस प्रकार बतलाया है- अनन्तानन्त परमाणुओंका उवसन्नासन्न स्कन्ध होता है। उवसन्नासन्न, सन्नासन, त्रुटिरेणु, सरेणु, रथरेणु, उत्तमभोगभूमिजबालाग्र, म. भो. बालान, ज. भो. बालान, कर्मभूमिजबालान, लिक्षा, यूक और यव, इनको उत्तरोत्तर आठसे गुणित करनेपर एक उत्सेधांगुल होता है। इसी प्रकार ही बनुयोगद्वार सूत्र (१३३) में भी उसका प्रमाण बतलाया गया है। वहाँ एक कर्मभूमिजबालाप्रके स्पानमें पूर्वापर-विदेह-जात-बालान और भरत-ऐरावत-जात-बालाग्र ऐसे दो स्थान ग्रहण किये गये हैं। परन्तु यहां प्रवचनसारोद्धारमें परमाणु, त्रसरेणु, रथरेणु, बालान, लिक्षा, यूक और यव, इन सातको ही उत्तरोत्तर आठसे गुणित करनेपर प्राप्त राशि प्रमाण उत्सेधांगुलको बतलाया गया है। इसमें समस्त परमाणुओंकी संख्या २०९७१५२ ( ८xexcxcxcxcxc ) बतलाई है जो उक्त क्रमानुसार ठीक है। यद्यपि यहां टीकाकारने अनुयोगसूत्रादिके विरुद्ध होनेसे उपलक्षण द्वारा शेष स्थानोंका भी प्रहण किया है, परन्तु मूलमन्थकारने उनका प्रहण क्यों नहीं किया, यह विचारणीय है । उनके वाक्य इस प्रकार हैं
परमाणू तसरेण रहरेण आगयं च बालस्स । लिक्खा ज्या य जवो अद्वगुणविडिया कमसो ॥ १३९१॥
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