Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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तिलोयपण्णत्ती
[५. २३७
सेसम्मि वहजयंतत्तिदए विजयं व वणणं सयलं । दक्षिणपच्छिमउत्तरदिसास ताणं पिणयराणिं ॥ २३७
।जंबूदीवेवण्णणा समत्ता। दीओ सयंभुरमणो चरिमो सो होदि सयलदीवाणं । चेटेदि तस्स मज्झे वलएण सयंपहो सेलो ॥ २३८ जोयणसहस्समेकं गाढो वरविविहरयणदिप्पंतो । मूलोवरिभाएसुं तडवेदीउववणादिजुदो ॥ २३९ तग्गिरिणो उच्छेहे वासे कूडेसु जेत्तियं माणं । तस्सि कालवसेणं' उवएसो संपइ पणटो ॥ २४०
। एवं विण्णासो समत्तो। एतो दीवरयणायराण बादरखेत्तफलं वत्तइस्सामो। तत्थ जंबूदीवमादिं कादूण वट्टसरूवावहिदसत्ताणं खेसफलमाणयणहमेसा सुत्तगाहातिगुणियवासा परिही तीए विक्खंभपादगुणिदाए । जलद्वंतं बादरखेत्तफलं सरिसवट्टाणं ॥ २४१
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शेष वैजयन्तादि तीन देवोंका संपूर्ण वर्णन विजय देवके ही समान है । इनके भी नगर क्रमश: दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशामें स्थित हैं ॥ २३७ ।।
जम्बूद्वीपका वर्णन समाप्त हुआ। सब द्वीपोंमें अन्तिम वह स्वयम्भूरमण द्वीप है । इसके मध्यभागमें मण्डलाकारसे स्वयंप्रभ शैल स्थित है ॥ २३८ ॥
यह पर्वत एक हजार योजनप्रमाण अवगाहसे सहित, उत्तम अनेक प्रकारके रत्नोंसे दैदीप्यमान, और मूल व उपरिम भागोंमें तटवेदी एवं उपवनादिसे संयुक्त है ।। २३९ ॥
इस पर्वतकी उंचाई, विस्तार और कूटोंका जितना प्रमाण है, उसका उपदेश कालवश इस समय नष्ट हो चुका है ॥ २४०॥
इस प्रकार विन्यास समाप्त हुआ । अब यहांसे आगे द्वीप-समुद्रोंके स्थूल क्षेत्रफलको कहते हैं। उनमेंसे जम्बूद्वीपको आदि करके गोलाकारसे अवस्थित क्षेत्रोंके क्षेत्रफलको लानेके लिये यह सूत्रगाथा है
गोल क्षेत्रके विस्तारसे तिगुणी उसकी परिधि ( बादर ) होती है, इस परिधिको विस्तारके चतुर्थ भागसे गुणा करनेपर जो राशि प्राप्त हो उतना समानगोल क्षेत्रोंका बादर क्षेत्रफल होता है ॥ २४१ ॥
१ द ब विजयं पि. २ ब जंबूद्वीपवणण्णा. ३द पुस्तके नास्त्येतत्. ४ द आदीओ. ५द देवाणं. ' ६दब उच्छेहो. ७दब कालवसेसा. ८दब दीवरणायराठाण बादरभेदतप्फलं. ९दब 'मिस्सा. १० द ब परिहीए ११ द ब सरिसदंडाणं.
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