Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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- ७. १७९ ]
सत्तमे। महाधियारो
[ ६८५
बावीसुत्तरछस्सय सत्तरससहस्सजोयण तिलक्खा । अट्ठोणियतिसयकला बारसमपद्दम्मि सा परिही ॥ १७५
३१७६२२
२९२ ४२७
तेवण्णुत्तरअडसयसत्तरससहस्संजोयण तिलक्खा । भट्ठकलाओ परिही तेरसमपहम्मि सीदरुचिकिरणो ॥
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तियजोयणलक्खाणिं भट्ठारस सहस्स्याणि तेसीदी । इगिवण्णजुदसदसा चोदसमपहे इमा परिही ॥ १७७
३१७८५३
३१८०८३
१५१ ४२७
तिजोयल खाईं अट्ठरससहस्सतिसयतेरसया । बेसयचउण उदिकला बाहिरमग्गम्मि सा परिही ॥ १७८
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चंदसुरा सिग्वगदी णिग्गच्छंता हुवंति पविसंता । मंदगदी यसमाणा परिहीओ भमंति सरिसकालेणं ॥
३१८३१३
८
४२७
बारहवें पथमें वह परिधि तीन लाख सत्तरह हजार छह सौ बाईस योजन और आठ कम तीन सौ अर्थात् दो सौ बानबै कलाप्रमाण है ॥ १७५ ॥
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२९४ ४२७
३१७३९२११७ + २३०११३ = ३१७६२२१२७ ।
चन्द्रके तेरहवें पथमें वह परिधि तीन लाख सत्तरह हजार आठ सौ तिरेपन योजन और आठ कलाप्रमाण है ॥ १७६ ॥
३१७६२२१९३ + २३०११३
३१७८५३ ४ २७ ।
चौदहवें पथमें यह परिधि तीन लाख अठारह हजार तेरासी योजन और एक सौ इक्यावन भागप्रमाण है ॥ १७७ ॥
३१७८५३ ४ २७
+ २३०
३१८०८३१५९ ।
बाह्य मार्ग में वह परिधि तीन लाख अठारह हजार तीन सौ तेरह योजन और दौ सौ चौरान कला अधिक है ॥ १७८ ॥
१ ४३ ४२७
३१८०८३१५१ + २३०
३१८३१३१÷४ ।
चन्द्र व सूर्य बाहर निकलते हुए अर्थात् बाह्य मार्ग की ओर आते समय शीघ्रगतिवाले और अभ्यन्तर मार्गकी ओर प्रवेश करते हुए मन्द गतिसे संयुक्त होते हैं, इसीलिये वे समान कालमें ही असमान परिधियोंका भ्रमण करते हैं ॥ १७९ ॥
१ ४ ३ ४२७
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१ व सतरसहस्य २ ६ व सतरस हरस° ३ ब चंदपुरा,
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