Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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७. २१९ ]
सत्तम। महाधियारो
एकतीस मुहुत्ता भदिरेगो चंदवासरपमाणं । तेवीसंसा हारो चउसयबादालमेत्ता य ॥ २१३
२३ ४४२
३१
डिवाए वासरादो वीहिं पडि ससइरस्स सो राहू । एक्केककलं मुंचदि पुग्णिमयं जाव लंघणदो || २१४ भहवा ससद्दर बिंबं पण्णरसदिणाई तस्सहावेणं । कसणाभं सुकिलाभं तेत्तियमेत्ताणि परिणमदि ॥ २१५ पुद्द पुद्द ससिबिंबाणिं छम्मासेसु च पुण्णिमंतम्मि । छाति पव्वराहू नियमेण गदिविसेसेहिं ॥ २१६ जंबूदीवम्मि दुवे दिवायरा ताण एकचारमही । रविबिंबाधियपणसयदहुत्तरा जोयणाणि तब्वासो || २१७
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सीदीदमेकस जंबूदीवे चरंति मसंडा । तीसुत्तरतिसयाणिं दिणयरबिंबाधियाणि लवणम्मि ॥ २१८
१८० । ३३० ||
उसीदाअधिययं दिणयरवीदीओ' होंति एदाणं । बिंबसमाणं वासो एक्केकाणं तदद्वबहलत्तं ॥ २१९
५१०
१८४
[ ६९१
२४
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चान्द्र दिवसका प्रमाण इकतीस मुहूर्त और एक मुहूर्तके चार सौ व्यालीस भाग में से तेईस भाग अधिक है ।। २१३ || ३१ ४ ४ २ ।
वह राहु प्रतिपद् दिनसे एक एक वीथीमें गमन विशेषसे पूर्णिमा तक चन्द्रकी एक एक कलाको छोड़ता है ॥ २१४ ॥
अथवा, चन्द्रबिम्ब अपने स्वभावसे ही पन्द्रह दिनों तक कृष्ण कान्ति स्वरूप और इतने ही दिनों तक शुक्ल कान्तिस्वरूप परिणमता है ॥ २१५ ॥
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पर्वराहु नियमसे गतिविशेषोंके कारण छह मास में पूर्णिमाके अन्तमें पृथक् पृथक् चन्द्रबिम्बको आच्छादित करते हैं ॥ २१६ ॥
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जम्बूद्वीपमें दो सूर्य हैं । उनकी चार- पृथिवी एक ही है । इस चार- पृथिवीका विस्तार सूर्यबिबसे अधिक पांचसौ दश योजनप्रमाण है || २१७ ॥ ५१०६६ ।
सूर्य एक सौ अस्सी योजन जम्बूद्वीपमें और दिनकरविम्ब ( है ) से अधिक तीन सौ तीस योजन लवणसमुद्र में गमन करते हैं ॥ २१८ ।। १८० । ३३० ६६ ।
सूर्य की गलियां एक सौ चौरासी हैं। इनमें से प्रत्येक गलीका विस्तार त्रिम्बके समान और बाहल्य इससे आधा है ॥ २१९ ॥ १८४ ॥ ६६ ॥
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१ द बिनाओ, व वीहाओ.
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