Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-७. २८५] सत्तमो महाधियारो
[७०३ विदियपहट्ठिदसूरे सत्तरमुहुत्तयाणि होदि दिणं । उणपट्टिकलब्भहियं छक्कोणियदुसयपरिहीसु ॥ २८१
घारसमुहुत्तयाणि दोणि कलाओ णिसाए परिमाणं । विदियपहट्ठिदसूरे तेत्तियमेत्तासु परिहीसु ॥ २८२
तदियपहट्ठिदतवणे सत्तरसमुहत्तयाणि होदि दिणं । सत्तावपण कलाओ तेत्तियमेत्तासु परिहीसु ॥ २८३
बारस मुहुत्तयाणि चत्तारि कलाओ रत्तिपरिमाणं । तप्परिहीसुं सूरे अवट्ठिदे तिदियमग्गम्मि ॥ २८४
सत्तरसमुहृत्ताई पंचावण्णा कलाओ परिमाणं । दिवसस्स तुरिममग्गट्टिदम्मि तिव्वंसुबिंबम्मि ॥ २८५
सूर्यके द्वितीय पथमें स्थित रहनेपर छह कम दो सौ अर्थात् एक सौ चौरानबै परिधियोंमें दिनका प्रमाण सत्तरह मुहूर्त और उनसठ कला अधिक होता है ॥ २८१ ॥ १७ ५३।।
सूर्यके द्वितीय मार्गमें स्थित रहनेपर उतनी ( १९४ ) ही परिधियोंमें रात्रिका प्रमाण बारह मुहूर्त और दो कलामात्र होता है ॥ २८२ ॥ १२६३ ।
सूर्यके तृतीय मार्गमें स्थित रहनेपर उतनी ही परिधियोंमें दिनका प्रमाण सत्तरह मुहूर्त और सत्तावन कला अधिक होता है ॥ २८३ ॥ १७५३ ।
__ सूर्यके तृतीय मार्ग में स्थित रहनेपर उन परिधियोंमें रात्रिका प्रमाण बारह मुहूर्त और चार कला आधिक होता है ॥ २८४ ॥ १२६ ।
तीव्रांशुबिम्ब अर्थात् सूर्यमण्डलके चतुर्थ मार्गमें स्थित रहनेपर दिनका प्रमाण सत्तरह मुहूर्त और पचवन कला अधिक होता है ॥ २८५ ॥ १७१५ ।
१द विदिय.
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