Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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तिलोयपण्णत्ती
[ ७. २४२
अथवादिणवइपहंतराणिं सोहिय धुवरासियम्मि भजिदूणं । रविबिंबेणं आणसु रविमग्गे विउणवाणउदी ॥ २४२
४८1८८३२ | १८४ ।'
६१/६. | दिणवइपदसूचिचए तियसीदीजुदसदेग संगुणिदे। होदि ह चारक्खेत्तं बिबूगं तज्जुदं सयलं ॥ २४३
१।१७०/१८३ । बद्ध ५१० ।
दिणरयणिजाणण? आदवतिमिराण कालपरिमाणं । मंदरपरिहिप्पहुदि चउणवदिसयं परूमो ॥ २४४
१९४। एकत्तीससहस्सा जोयणया छरसयाणि बावीसं । मंदरगिरिंदपरिरयरासिस्स हुवेदि परिमाणं ॥ २४५
३७६२२। णभछक्कसत्तसत्ता सत्तेक्ककक्कमेण जोयणया । अट्ठहिदपंचभागा खेमावझाण पणिधिपरिहि त्ति ॥२४६
६१
अथवा, ध्रुवराशिमेंसे सूर्यके मार्गान्तरालोंको घटाकर शेषमें रविबिम्ब (सूर्यबिम्यविस्तार) का भाग देनेपर बानबैके द्ने अर्थात् एक सौ चौरासी सूर्यमार्गोका प्रमाण आता है ॥ २४२ ॥ ध्रु. रा. ३ ९१५८ - २ २ ३ २ ६ = ८८.३२, ८४ ३२ + ६६ = १८४ मार्ग संख्या ।
सूर्यकी पथसूचीवृद्धिको एक सौ तेरासीसे गुणा करनेपर जो प्राप्त हो उतना सूर्यका बिम्बसे रहित चार-क्षेत्र होता है। इसमें बिम्बविस्तारको मिलानेपर समस्त चारक्षेत्रका प्रमाण होता है ॥ २४३ ॥
सू. प. सूचीवृद्धि - १६१ ४ १८३ = ३ १ १ १ ० = ५१० विम्बरहित चार क्षेत्र; ५१० + ई = ५१०१६ समस्त चार क्षेत्र ।
दिन और रात्रिके जाननेके लिये आतप और तिमिरके कालप्रमाणको और मेरुपरिधि आदि एक सौ चौरानबै परिधियोंको कहते हैं ॥ २४४ ॥ १९४ । मन्दरपर्वतकी परिधिराशिका प्रमाण इकतीस हजार छह सौ बाईस योजनमात्र है ।।२४५॥
३१६२२। क्षेमा और अवध्या नगरीके प्रणिधिभागोंमें परिधिका प्रमाण शून्य, छह, सात, सात, सात और एक, इन अंकोंके क्रमसे अर्थात् एक लाख सतत्तर हजार सात सौ साठ योजन और एक योजनके आठ भागोंमेंसे पांच भागमात्र है ॥ २४६ ॥ १७७७६०३।
१द १८८ ३२ | १ । ४८ . २ द व सूचिवाए. ३ द ब हिदा पंचभागे.
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