Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-५, २४७]
पंचमो महाधियारो इटस्स दीवस्स वा सायरस्स वा आइमसूइस्सद्धं लक्खद्धसंजुदस्स आणयणहेदुमिमा सुत्तगाहाइच्छियदीवुवहीण रुंदं दोलक्खविरहिदं मिलिदं । बाहिरसूइम्मि तदो पंचहिदं तत्थ जं लद्धं ॥ २४६ आदिमसूइस्सद्धं लक्खद्धजुदं हुवेदि इट्ठस्प । एवं लवणसमुद्दप्पहुदि आणेज अंतो ति ॥ २४७
बिदियपक्खे अप्पाबहुगं वत्तहस्सोमो-जंबूदीवस्सद्धस्स विक्खंभादो लवणसमुहस्स एयदिसरुंद दिवडलक्खणब्भहियं होइ। जंबूदीवस्सद्धसहितलवणसमुद्दस्स एयदिसरुंदादो धादइसंडदीवस्स एयदिसकंद दिवडलक्खेणब्भहियं होइ। एवं सम्वन्भंतरदीवसायराणं एयदिसरुंदादो तदणंतरउवरिमदीवस्स वा सायरस्स वा एयदिसरुंदवड्डी दिवडीलक्ष्णब्भहियं होऊण गच्छइ जाव सयंभूरमणसमुद्दो त्ति । तम्वड्डीभाणयणहेदुमिमा सुत्तगाहा
उदाहरण-पुष्करद्वीपकी विस्तारवृद्धिका प्रमाण- पु. वि. १६ ला. x ४ + २९ ला. * ३ = ३१ ला.; १६ ला. x २ - ३१ ला. = १ ला.
विवक्षित द्वीप अथवा समुद्रकी अर्ध लाख योजनोंसे संयुक्त अर्ध आदिम सूचीको लानेके लिये ये सूत्रगाथायें हैं
इच्छित द्वीप-समुद्रोंके विस्तारमेंसे दो लाख कम करके शेषको बाह्य सूचीमें मिलाकर पांचका भाग देनेपर जो लब्ध आवे, उतना अर्ध लाख सहित इष्ट द्वीप अथवा समुद्रकी आधी आदिम सूचीका प्रमाण होता है । इसी प्रकार लवणसमुद्रसे लेकर अन्तिम समुद्र तक उक्त सूचीप्रमाणको लाना चाहिये ॥ २४६-२४७॥ .
___ उदाहरण- धातकीखण्डकी अर्ध लाख योजन सहित अर्ध आदिम सूची ३ ला. योजन है- धात. वि. ४ लाख - २ लाख = २ लाख । बाह्य सूची १३ लाख +२ लाख ५= ३ ला. = २५०००० + ५०००० ।
द्वितीय पक्षमें अल्पबहुत्वको कहते हैं- जम्बूद्वीपके अर्ध विस्तारकी अपेक्षा लवणसमुद्रका एक दिशासम्बन्धी विस्तार डेढ़ लाख योजन अधिक है। जम्बूद्वपिके अर्धविस्तार सहित लवणसमुद्रके एक दिशासम्बन्धी विस्तारकी अपेक्षा धातकीखण्डद्वीपका एक दिशासम्बन्धी विस्तार भी डेढ़ लाख योजन अधिक है । इसी प्रकार सम्पूर्ण अभ्यन्तर द्वीप-समुद्रोंके एक दिशासम्बंधी विस्तारकी अपेक्षा उनके अनन्तर स्थित अग्रिम द्वीप अथवा समुद्र के एक दिशासम्बन्धी विस्तारमें स्वयम्भूरमणसमुद्र तक डेढ़ लाख योजन वृद्धि होती गई है। इस वृद्धिप्रमाणको लानेके लिये ये सूत्रगाथायें हैं
......... १द दीवावहीणं, प दीवोवहीण. . .२ द वण्णइस्सामो, ब वतेइस्सामो.
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