Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-५. ३१८) पंचमो महाधियारो
[६३७ ___ तदोपदेसुत्त कमेण चदुहं मज्झिमोगाहणवियप्पं वच्चदि तदणंतरोगाहणं संखेजगुणं पत्तो त्ति । ताधे चरिंदियणिव्वत्तिपज्ज तयस्स उक्कस्सोगाहणं दोसइ । तं कस्स होदि त्ति भणिदे सयंपहाचलपरभागट्ठियखेत्ते उप्पण्णभमरस्स उकस्सोगाहणं कस्सइ दीसइ । तं केत्तिया इदि उत्ते उस्सेहजोयणायामं अद्धजोयणुस्सेहं जोयणद्धपरिहिविक्खंभं ठविय विखंभद्धमुस्सेहगुणमायामेण गुणिदे उस्सेहजोयणस्स तिणि भट्ठभागा भवति । तं चेदं। ३ । ते पमाणघणंगुला कीरमाणे एक्कसयपंचतीसकोडीए उणणउदिलक्ख- चउवण्णसहस्स-चउसय-छपणउदिरूवेहिं गुणिघणंगुलागि हवंति । तं चेदं।६।१३५८९५४४९६ ।
___ तदो' पदेसुत्तरकमेण तिण्ह मज्झिमोगाहणवियप्पं वच्चदि तदणंतरोगाहणं संखेजगुणं पत्तो त्ति | ताधे बीइंदियाणवत्तिपजत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं होइ । तं कम्हि होइ त्ति भणिदे सयपहाचलपरभागट्टिय
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उदाहरण- x ३३ x 2 = ३१२, ८३९५ x ३६२३८७८६५६ = ११९४३९३६ प्र. घ. अं।
___ पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे चार जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर अवगाहनाके संख्यातगुणी होने तक चालू रहता है। तब चारइन्द्रिय निवृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । वह किस जीवके होती है, इस प्रकार कहनेपर उत्तर देते हैं कि स्वयंप्रभाचलके बाह्य भागस्थ क्षेत्रमें उत्पन्न किसी भ्रमरके उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । वह कितने मात्र है, इस प्रकार कहनेपर उत्तर देते हैं कि एक उत्सेध योजनप्रमाण आयाम, आध योजन उंचाई, और आध योजनकी परिधिप्रमाण विष्कंभको रखकर विष्कम्भके आधेको उंचाईसे गुणा करके फिर आयामसे गुणा करनेपर एक उत्सेध योजनके आठ भागोमेंसे तीन भाग होते हैं । इनके प्रमाणघनांगुल करनेपर एक सौ पैंतीस करोड़ नवासी लाख चौअन हजार चारसौ छ्यानबै रूपोंसे गुणित घनांगुल होते हैं।
उदाहरण-आयाम १ उत्सेध योजन, उंचाई ३ यो., विस्तार १३ यो. ( १ यो. की परिधि ३ ४ ३)। २ = x 1 = x १ = ; ३ x ३६२३८७८६५६= १३५८९५४४९६ प्र. घनांगुल ।
पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे तीन जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर अवगाहनाके संख्यातगुणी प्राप्त होने तक चालू रहता है । तब दोइन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना होती है । यह कहां होती है, इस प्रकार कहनेपर उत्तर देते हैं कि स्वयंप्रभाचलके बाह्य भागमें
१९ एक्कसमयंकसमयपंचतीस, व एक्कसमयकसेस य पंचतीस. २६ व तदा.
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