Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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तिलोयपण्णत्ती
सिंहालकणिहक्खा कालमहाकालरुद्दमहरुद्दा । संताणविउलसंभवसव्वट्ठी खेमचंदो य ॥ १९
णिम्मंतजोइमता दिससंठियविरदवीतसोका य । णिच्चलपलंबभासुरसयंपभा विजयवइजयंते य ॥२०
सीमंकरावराजियजयंतविमलाभयंकरो वियों । कट्ठी वियडों कजलि अग्गीजालो असोकयो केदू ॥ २१
।१२। खीरसऽघस्सवणज्जलकेदुकेदुअंतरयएक्कसंठाणा । अस्सो य भावग्गह चरिमा य महग्गहा णामा ॥२२
छप्पण्ण छक्क छक्कं छण्णव सुण्णाणि होति दसठाणा । दोणवपंचय छक्कं अट्टचउपंचअंककमे ॥ २३ एदेण गुणिदसंखेज्जरूवपदरंगुलेहि भजिदूर्ण । सेढिकदी एक्कारसहदम्मि सव्वग्गहाण परिसंखा ॥ २४
४ ५४८६५९२००००००००००९६६६५६ । एक्केक्कससंकाणं अट्ठावीसा हुवंति णक्खत्ता । एदाणं णामाई कमजुत्तीए परूवेमो ॥ २५
काल", महाकाल", रुद्र', महारुद्र", संतान", विपुल", संभव", सर्वार्थी , क्षेम", चन्द्र, निर्मन्त्र", ज्योतिष्मान्”, दिशसंस्थित", विरत, वीतशोक, निश्चल', प्रलंब, भासुर', स्वयंभ", विजय", वैजयन्त , सीमंकर", अपराजित", जयन्त", विमल", अभयंकर", विकस, काष्ठी", विकट", कजली", अग्निज्वाल", अशोक", केतु", क्षीरस", अघ, श्रवण', जलकेतु, केतु, अन्तरद", एकसंस्थान", अश्व, भावग्रह और अन्तिम महाग्रह', इस प्रकार ये आठासी ग्रहोंके नाम हैं ॥ १५.-२२ ॥
छह, पांच, छह, छह, छह, नौ, दश स्थानोंमें शून्य, दो, नौ, पांच, छह, आठ, चार और पांच, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उससे गुणित संख्यातरूप प्रतरांगुलोंका जगश्रेणीके वर्गमें भाग देनेपर जो लब्ध आवे उसे ग्यारहसे गुणा करनेपर सम्पूर्ण ग्रहोंकी संख्या होती है ॥ २३-२४ ॥ ज. श्रे. (सं. प्र. अं. ४ ५४८६५९२००००००००००९६६६५६) x ११.
एक एक चन्द्रके अट्ठाईस नक्षत्र होते हैं । यहां क्रमयुक्तिसे उनके नामोंको कहते हैं ॥२५॥
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१द ब १२. २द व १०. ३ द ब जय'. ४द ब विमला. ५६ ब. विमलो. ब अससो. ७ब भावगाह. ८ ब हुंति.
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