Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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६७८] तिलोयपण्णत्ती
[७.१४१पणदालसहस्साणि तिणि सया जोयगाणि उणतीसं । इगिहत्तरितिसयकला पण्णरसपहम्मि तं विच्चं ॥१४१
बाहिरपहादु ससिणो आदिमवीहीए आगमणकाले । पुचपमेलिदखेदं फेलसु' जा चोदसादिपढमपहं ॥ सटिजुदं तिसयाणिं सोहेन्जसु जंबुदीववासम्मि । जं सेसं आबाई अभंतरमंडलिंदूणं ॥ १४३ णवणउदिसहस्सा]ि छस्सयचालीसजोयणाणिं पि । चंदाणं विच्चालं अब्भंतरमंडलठिदाणं ॥ १४४
९९६४० । गिरिससहरपहवड्डी दोहिं गुणिदाए होदि जं लद्धं । सा यावाधावड्डी पडिमग्गं चंदचंदाणं ॥ १४५
पन्द्रहवें पथमें वह अन्तराल पैंतालीस हजार तीन सौ उनतीस योजन और तीन सौ इकहत्तर कला अधिक है ॥ १४१ ॥ ४५२९३ ४ ३३ + ३६४५४ = ४५३२९३५ ।
बाह्य अर्थात् पन्द्रहवें पथसे चन्द्रके प्रथम वीथीकी ओर आगमनकालमें पहिले मिलाये हुए क्षेत्र ( ३६४५७ ) को उत्तरोत्तर कम करते जानेसे चौदहवीं गलीको आदि लेकर प्रथम गली तकका अन्तरालप्रमाण आता है ॥ १४२ ॥
जम्बूद्वीपके विस्तारमेंसे तीन सौ साठ योजनोंको कम कर देनेपर जो शेष रहे उतना अभ्यन्तर मण्डलमें स्थित दोनों चन्द्रोंके आवाधा अर्थात् अन्तरालका प्रमाण होता है ॥ १४३ ॥ ज. द्वी. वि. १००००० - ३६० ( दोनों ओरका चार क्षेत्र ) = ९९६४० यो.।
अभ्यन्तर मण्डलमें स्थित चन्द्रोंका अन्तराल निन्यानबे हजार छह सौ चालीस योजनप्रमाण है ॥ १४४ ॥
सुमेरु और चन्द्रपथों के बीच जो अन्तरालवृद्धिका प्रमाण है उसे दोसे गुणा करनेपर जो लब्ध हो उतना प्रत्येक गली में चन्द्रोंके परस्पर एक दूसरेके बीचमें रहनेवाले अन्तरालकी घृद्धिका प्रमाण होता है ॥ १४५॥
मेरु और चन्द्रपथोंका अन्तर ३६४५६४ २ = ७२३५६ चन्द्रोंकी अन्तरालवृद्धि ।
१६ फैलम.
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