Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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६७० ]
तिलोयपण्णत्ती
[ ७.९४
ताणं यरतलागि फलिक्ष्मयाणि सुमंद किरणाणिं । उत्तान गोलगोमाणि णिश्वस्सहावाणि ॥ ९४ उवरिमतल विक्खंभा ताणं कोसस्स परिमभागा य । सेसा हि वण्णणाओ सुक्कपुराणं सरिच्छाओ ।। ९५ चित्तोवरमतलादो तियऊणियगवसयाणि जोयगर । गंतू उवरि गयणे मंगलगयराणि चेति । ९६
८९७ ।
ताणं णयरत लागि रुहिरारुप उमराय नइयाणिं । उत्तोरुगोमाणि सव्वाणि मंदकिरणानि ॥ ९७ उवरिमतलविक्खंभो कोसम्सद्धं तदद्धबहलतं । सेसाओ वण्णणाओ तागं पुण्युत्तसरिसाओ ॥ ९८ चित्तायरिमतलादो गंतूणं णवसयाणि जोयगए । उबारे सुवण्णमयाई सगियरागिं णहे होंति ॥ ९९
९०० ।
Bataaoarder कोस होंति ताण पत्तेक्कं । सेसाओ वण्णणाओ पुच्चपुराणं सरिच्छाभो ॥ १०० ॥ अवसान गहाणं पयरीओ उवरि चित्तभूमीओ । गंतून बुहसणीणं विच्चाले होंति णिच्चाओ ॥ १०१ ॥
उन गुरुओं के नगरतल स्फटिकमणिसे निर्मित, सुन्दर मन्द किरणोंसे संयुक्त, ऊर्ध्वमुख स्थित गोलका सदृश और नित्य-स्वभाववाले हैं ॥ ९४ ॥
उनके उपरि तलका विस्तार कोशके बहुभाग अर्थात् कुछ कम एक कोश प्रमाण है । उनका शेष वर्णन शुक्रपुरोंके सदृश है ॥ ९५ ॥
चित्रा पृथिवीके उपरिम तलसे तीन कम नौ सौ योजन ऊपर जाकर आकाशमें मंगलनगर स्थित हैं || ९६ ॥ ८९७ ।
ये सब नगरतल खूनके समान लाल वर्णवाले पद्मरागमणियों से निर्मित, ऊर्ध्वमुखस्थित गोलका के सदृश और मन्द किरणोंसे संयुक्त होते हैं ॥ ९७ ॥
उनके उपरिम तलका विस्तार आधा कोश व बाहल्य इससे आधा है । इनका शेष वर्णन पूर्वोक्त नगरोंके सदृश है ॥ ९८ ॥
चित्रा पृथिवीके उपरिम तल से नौसौ योजन ऊपर जाकर आकाशमें शनियों के सुवर्णमय नगर हैं ॥ ९९ ॥ ९००।
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उनमें से प्रत्येकके उपरिम तलका विस्तार आध कोशमात्र है । इनका शेष वर्णन पूर्व नगरोंके सदृश है ॥ १०० ॥
अवशिष्ट ग्रहोंकी नित्य नगरियां चित्रा पृथिवके ऊपर जाकर बुध और शनियोंके अन्तरालमें हैं ॥ १०१ ॥
१ व णयरि° २ द बहल ३ द व विक्खमो.
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