Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-७. १२१ ] सत्तमो महाधियारो
[६७३ चरबिंबा मणुवाणं खेत्ते तस्सि च जंबुदीवम्मि । दोणि मियंका ताणं एक चिय होदि चारमही ॥ ११६ पंचसयजोयणाणिं दसुत्तराई हुवेदि विक्खंभो । ससहरचारमहीए दिणयरविबादिरित्ताणिं ॥ ११७
वीसूणबेसयाणि जंबूदीवे चरति सीदकरा । रविमंडलाधियाणि तीसुत्तरतियसयाणि लवणम्मि ॥ ११८ पण्णरसससहराणं वीथीओ होति चारखेत्तम्मि । मंडलसमहँदाओ तदद्धबहलाओ पत्तेकं ॥ ११९
५६।२८
६१/६१ सटिजुदं तिसयाणि मंदररंदच जंबुविक्खंभे । सोधिय दलिते लद्धं चंदादिमहीहिं मंदरंतरयं ॥ १२० चउदालसहस्साणिं वीसुत्तरभडसयाणि मंदरदो । गच्छिय सम्वन्भतरवीही इंदूण परिमाणं ॥ १२॥
४४८२० ।
चर अर्थात् गमनशील बिम्ब मनुष्यक्षेत्रमें ही हैं, मनुष्यक्षेत्रके भीतर भी जम्बूद्वीपमें जो दो चन्द्र हैं उनकी संचार-भूमि एक ही है ॥ ११६ ॥
चन्द्रकी संचार-भूमिका विस्तार सूर्य-बिम्बसे अतिरिक्त अर्थात् एक योजनके इकसठ भागोंमेंसे अड़तालीस भाग अधिक पांचसौ दश योजनमात्र है ॥ ११७ ॥ यो. ५१०६४ ।
चन्द्रमा बीस कम दोसौ योजन जम्बूद्वीपमें और सूर्यमण्डलसे अधिक तीनसौ तीस योजनप्रमाण लवणसमुद्रमें संचार करते हैं ॥ ११८॥
चन्द्रोंके चारक्षेत्रमें जो पन्द्रह गलियां हैं उनमेंसे प्रत्येकका विस्तार चन्द्रमण्डलके बराबर एक योजनके इकसठ भागोंमेंसे छप्पन भागप्रमाण और बाहल्य इससे आधा है ॥११९॥
जम्बूद्वीपके विस्तारमेंसे तीनसौ साठ योजन ( दोनों ओरका चार-क्षेत्र ) और मन्दर पर्वतके विस्तारको कम करके शेषको आधा करनेपर जो लब्ध आवे उतना चन्द्रकी आदि चारपृथिवासे मन्दर पर्वतका अन्तर है ॥ १२० ॥
मन्दर पर्वतसे चलकर चवालीस हजार आठसौ बीस योजन चन्द्रोंकी सर्वाभ्यन्तर वीथीका प्रमाण है । अर्थात् मन्दराचल और चन्द्रकी अभ्यन्तर गलीके बीच उपर्युक्त योजनों प्रमाण अन्तराल हैं.॥ १२१ ॥
उहाहरण- जे. द्वी. का वि. यो. १००००० - ३६० = ९९६४०, ९९६४० - १०००० ( मन्दरविष्कम्भ ) = ८९६४०; ८९६४० + २ = ४४८२० अन्तरप्रमाण ।
१ द ब विक्खंभा. २ गच्छय समंतरवीही.
TP. 85
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