Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-6. ३२)
सत्तमो महाधियारो कित्तियरोहिणिमिगसिरमदाओ' पुणध्वसु तहापुस्सो। असिलेसादी मघो पुवाओ उत्तराओ य हत्थो य॥ चित्ताओ सादीओ होति विसाहाणुराहजेट्ठाओ । मूलं पुव्वासाढा तत्तो वि य उत्तरासाढा ॥ २७ भभिजीसवणधणिट्टा सदभिसणामाओ पुषभद्दपदा । उत्तरभद्दपदा रेवदीओ तह अस्सिणी भरणी ॥२८ दुगइगितियतितिणवया एका ठाणेसु णवसु सुण्णाणिं । चउअट्ठएकतियसत्तणवयगयणेकअंककमे ॥ २९ एदेहि गुणिदसंखेज्जरूवपदरंगुलेहिं भजिदूणं । सेढिकदी सत्तहदे परिसंखा सव्वरिक्खाणं॥३०
४।०।१८९७३१८४०००००००००१९३३३१२ । एकेकमयंकाणं हुवति ताराण कोडिकोडीओ | छावठिसहस्साणं णवसया पंचहत्तरिजुदाणिं ॥ ३१
तारागणसंखा ६६९७५००००००००००००।
संपहि कालवसेणं ताराणामाण णस्थि उवदेसी। एदाणं सवाणं परमाणाणिं परवेमा ॥ ३२
'कृत्तिका, रोहिणी, मृगशीर्षा, "आज़े, "पुनर्वसु, 'पुष्य, आश्लेषा, मघा, 'पूर्वी फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, 'हस्त, चित्रा, "स्वाति, "विशाखा, "अनुराधा, ज्येष्ठा, "मूल, "पूर्वाषाढ़ा, "उत्तराषाढ़ा, "अभिजित् , "श्रवण "धनिष्ठा, शतभिषा, "पूर्व भाद्रपदा, "उत्तर भाद्रपदा, रेवति, "अश्विनी और “भरणी, ये उन नक्षत्रों के नाम हैं ॥ २६-२८ ॥
दो, एक, तीन, तीन, तीन नौ, एक, नौ स्थानों में शून्य, चार, आठ, एक, तीन, सात, नौ, शून्य और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उससे गुणित संख्यातरूप प्रतरांगुलोंका जगश्रेणीके वर्गमें भाग देनेपर जो लब्ध आवे उसे सातसे गुणा करनेपर सब नक्षत्रों की संख्या होती है ॥ २९-३० ॥ ज. श्रे'. (सं. प्र. अं. ४ १०९७३१८४०००००००००१९३३३१२) ७.
एक एक चन्द्रके छयासठ हजार नौ सौ पचत्तर कोड़ाकोड़ी तारे होते हैं ॥ ३१ ॥
इस समय कालके वशसे ताराओं के नामोंका उपदेश नहीं है । इन सबके प्रमाणोंको कहते हैं ॥ ३२॥
१८ सिरे. २ब अबउ.
३६ ब भरणीओ. ४ द व कमो.
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