Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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६५० ]
तिलोयपण्णत्ती
[ ६. ६८
पडिइंदा सामाणिय तणुरक्खा होंति तिष्णि परिसाओ । सत्ताणीयपण्णा अभियोगं ताण पत्तेयं ॥ ६८ raat visiदो एकेकाणं हुवेदि इंदाणं । चचारि सहस्सा सामायिणातदेवाणं ॥ ६९
१ । सा ४००० ।
एक्केकसिदे तरक्वाणं दोइ सोलससइस्सा | अदवार सकता विपरिसानुं सदस्यागं ॥ ७० १६००० | ८०० | १०००० | १२००० ।
करियपाइक तहा गंधवा गट्टआ रहा बला । इस सत्ताणीयार्थि पत्तेक्कं होति इंद्राणं || ७१ कुंजरतुरयादीणं पुह पुह चेति सत्त कक्खाओ । तेसुं पदमा कक्खा अट्ठावीसं सहस्वाणिं ॥ ७२
२८००० ।
बिदियादीणं दुगुणा दुगुणा ते होंति कुंत्र प्हुदी । एदाणं मिलिदाणं परिमाणाई परूत्रेमो || ७३ पंचत्ती लक्खा छप्पण्णसहस्ससंजुदा ताणं । एकेकस्सि इंदे इत्थीगं दोति परिमाणं ॥ ७४
३५५६००० ।
उन इन्द्रों से प्रत्येक प्रतीन्द्र, सामानिक, तनुरक्ष, तीनों पारिपद, सात अनीक, प्रकीर्गिक और आभियोग्य, इस प्रकार ये परिवार देव होते हैं ॥ ६८ ॥
प्रत्येक इन्द्रके एक एक प्रतीन्द्र और चार हजार सामानिक नामक देव होते हैं ॥ ६९ ॥ प्र. १ । सा. ४००० ।
एक एक इन्द्रके तनुरक्षकों का प्रमाण सोलह हजार और तीनों पारिषद देवोंका प्रमाण क्रमशः आठ हजार, दश हजार तथा बारह हजार है ॥ ७० ॥
१६००० । ८००० | १०००० । १२००० ।
हाथी, घोड़ा, पदाति, गन्ध, नर्तक, रथ और बैल, इस प्रकार ये प्रत्येक इन्द्रोंके सात सेनायें होती हैं ॥ ७१ ॥
हाथी और घोड़े आदिको पृथक् पृथक् सात कक्षायें स्थित हैं । इनमेंसे प्रथम कक्षाका प्रमाण अट्ठाईस हजार है ॥ ७२ ॥। २८००० ।
द्वितीयादिक कक्षाओं में वे हाथी आदि दूने दूने हैं । इनके सम्मिलित प्रमाणको कहते हैं ॥ ७३ ॥
उनमें से प्रत्येक इन्द्रके हाथियोंका प्रमाण पैंतीस लाख और छप्पन्न हजार है ॥ ७४ ॥
३५५६००० ।
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