Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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तिलोयपण्णत्ती
[ ६.९०अवरा ओहिधरित्ती अजुदाउजुदस्स पंचकोसाणिं । उकिट्ठा पण्णासा हेटोवरि पस्समाणस्स ॥ ९०
को ५ को ५० । पलिदोवमाउजुत्तो वेंतरदेवो तलम्मि उरिस्मि । अवधीए जोयणाणं एक लक्खं पलोएदि ॥ ९१
। ओहिणाणं सम्मत्तं । दसवाससहस्साऊ एक्कसयं मागुसाण मारेदु । पोसेढुं पि समत्थी एकेको वेतरी देवो ॥ ९२ पण्णाधियसयदंडप्पमाणविक्खंभबहल जुत्तं सो । खेत्तं णियसत्तीए उक्खगिदूणं खवेदि' अण्णस्थ ॥ ९३ पल्लवृदि भाजेहिं छक्खंडाणि पि एक्कपल्लाऊ । मारेदुं पोसेढुं तेसु समत्थो ठिई लोयं ॥ ९४ उक्कस्से स्वसदं देवी विकरेदि अजुदमेत्ताऊ । अवरे सगरूवाणिं मझिमयं विविहरूवाणिं ॥ ९५
नीचे व ऊपर देखनेवाले दश हजार वर्षप्रमाण आयुसे युक्त व्यन्तर देवोंके जघन्य अवधिका विषय पांच कोश और उत्कृष्ट पचास कोशमात्र है ॥ ९० ॥
जघन्य को. ५ । उत्कृष्ट को. ५० । पल्योपमप्रमाण आयुसे युक्त व्यन्तरदेव अवधिज्ञानसे नीचे व ऊपर एक लाख योजनप्रमाण देखते हैं ॥ ९१ ॥ १००००० ।
अवधिज्ञानका कथन समाप्त हुआ । __दश हजार वर्ष प्रमाण आयुका धारक प्रत्येक व्यन्तर देव एक सौ मनुष्योंको मारने व पालनेके लिये समर्थ है ॥ ९२ ॥
वह देव एक सौ पचास धनुषप्रमाण विस्तार व बाहत्यसे युक्त क्षेत्रको अपनी शक्तिसे उखाड़कर अन्यत्र फेक सकता है ॥ ९३ ॥
एक पल्यप्रमाण आयुका धारक व्यन्तर देव अपनी भुजओंसे छह खण्डोंको उलट सकता है और उनमें स्थित लोगोंको मारने व पालनेके लिये भी समर्थ है ॥ ९४ ॥
दश हजार वर्षमात्र आयुका धारक व्यन्तर देव उत्कृष्ट रूपसे सौ रूपोंकी और जघन्यरूपसे सात रूपोंकी विक्रिया करता है । मध्यमरूपसे वह देव सातसे ऊपर और सौसे नाचे विविध रूपोंकी विक्रिया करता है ॥ ९५ ।।
१६ वेदि. २द पक्ष हि, व पद्धदि. ३द खंडेण पि, ४द ब दिदै..
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