Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-६. ३५
छटो महाधियारों मूलम्मि चउदिसासुं चेत्ततरूणं जिणिदपडिमाओ । चत्तारो चत्तारो चउतोरमसोहमाणाओ ॥३० पल्लंकभासणाओ सपाडिहरामो रयणमइयाओ । दसणमेत्तगिवारिददुरितामओ देंतु वो मोक्ख ॥३७ .
।चिण्हागि सम्मत्ता। किंणरपहुदिचउक्क दसदसभेदं हवेदि पत्तेकं । अक्खा बारसभेदा सत्तवियपाणि रक्खसिया ॥ ३२ . भूदाणि तेत्तियाणि पिसाचणामा चउहसवियप्पा । दोहो इंवा दोदो देवीभो दोसहस्सपल्लहिया ॥ २१ किं १०, किंपु १०, म १०, गं १०, ज १२, र ७, भू , पि १४।२।२ । २०००।
। कुलभेदो सम्मत्तो । ते किंपुरिसा किंणरहिदयंगमरूबपालिकिंणरया। किंगरणिदिक्णामा मणरम्मा किंणरुतमया ॥ ३१ रतिपियजेट्ठा ताणं किंपुरुता किंणरा दुवे इंदा । अवतंसा केदुमदी रदिसणारदिपियाओ देवीभो ॥ ३५
किंणर गदा।
चैत्यवृक्षोंके मूलमें चारों ओर चार तोरणोंसे शोभायमान चार चार जिनेन्द्रपतिमायें विराजमान हैं ॥ ३०॥
पल्यंक आसनसे स्थित, प्रातिहार्योसे सहित, और दर्शनमात्रसे ही पापको दूर करनेवाली वे रत्नमयी जिनेन्द्रप्रतिमायें आप लोगोंको मोक्ष प्रदान करें ॥ ३१ ॥
इस प्रकार चिन्होंका कथन समाप्त हुआ । किन्नरप्रभृति चार प्रकारके व्यन्तरोमेसे प्रत्येकके दश दश, यक्षोंके बारह, राक्षसोंके सात, भूतोंके सात और पिशाचोंके चौदह भेद हैं । इनमें दो दो इन्द्र और उनके दो दो देवियां ( अग्रदेवियां ) होती हैं । ये देवियां दो हजार बल्लभिकाओंसे सहित होती हैं ॥३२-३३॥
किन्नर १०, किम्पुरुष १०, महोरग १०, गंधर्व १०, यक्ष १२, राक्षस ७, भूत ७, पिशाच १४ । इं. २, देवी २, बल्ल. २००० ।
कुलभेदका वर्णन समाप्त हुआ । किम्पुरुष, किन्नर, हृदयंगम, रूपपाली, किन्नरकिन्नर, अनिन्दित, मनोरम, किन्नरोत्तम, रतिप्रिय और ज्येष्ठ, ये दश प्रकारके किन्नर जातिके देव होते हैं । इनके किम्पुरुष और किन्नरनामक दो इन्द्र और इन इन्द्रोंके अवतंसा, केतुमती, रतिसेना व रतिप्रिया नामक देवियां होती हैं ॥ ३४-३५॥
किन्नरोंका कथन समाप्त हुआ ।
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