Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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६४० ]
तिलोयपण्णत्ती
[ ५.३२१
जीवस्स होदित्ति उत्ते सर्वपहाचलपरभागट्ठिए खेते. उप्पण्णसमुच्छिम महामच्छस्स सव्वोकस्सो गाहणं कस्स दीसह । तं केत्तिया इदि उत्ते उस्सेहजोयणेण एक्कसहस्सायामं पंचसदबिक्खभं तदद्धउस्सेहं । तं प्रमाणंगुले कीरमाणे चउसहस्स-पंचसय एऊणतीसकोडीओ चुलसीदिलक्ख-तेसीदिसहस्त्र- दुसयको डिरूहि गुणेपमाघ गुलाणि भवंति । तं चेदं । ६ । ४५२९८४८३२००००००००० ।
| एवं ओगाहणवियप्पं सम्मतं ।
जं णाणरयणदीभो' लोयालोयप्पयासणसमत्थो । पणमामि पुप्फयंतं सुमइकरं भव्वसंघस्स ॥ ३२१ ॥ एवमारियपरंपरागयतिलोयपण्णत्तीए तिरियलोयसरूवणिरूवणपण्णत्ती नाम पंचमी महाधियारो सम्मत्तो ॥ ५ ॥
होती है, इस प्रकार कहने पर उत्तर देते हैं कि स्वयंप्रभाचलके बाह्य भागस्थित क्षेत्र में उत्पन्न किसी सम्मूर्च्छन महामत्स्यके सर्वोत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । वह कितने प्रमाण है, इस प्रकार कहने पर उत्तर देते हैं कि उत्सेव योजनसे एक हजार योजन लंबाईरूप, पांच सौ योजन विस्ताररूप, और इससे आधी अर्थात् अढ़ाई सौ योजन प्रमाण ऊंचाई रूप उक्त अवगाहना है । इसके प्रमाणांगुल करनेपर चार हजार पांच सौ उनतीस करोड़ चौरासी लाख तेरासी हजार दो सौ करोड़ रूप से गुणित प्रमाणनांगुल होते हैं ।
उदाहरण - महामत्स्यकी लंबाई यो. १०००, विस्तार यो. ५००, उंचाई यो. २५० है ।
१०००×५००=५०००००; ५०००००४२५० = १२५००००००; १२५०० .००००×३६२३८७८६५६= ४५२९८४८३२००००००००० प्रमाणघनांगुल । इस प्रकार अवगाहनाभेदों का कथन समाप्त हुआ ।
जिनका ज्ञानरूपी रत्नदीपक लोक व अलोकके प्रकाशित करनेमें समर्थ है और जो भव्य समूहको सुमति प्रदान करनेवाले हैं ऐसे पुष्पदन्त जिनेन्द्रको मैं नमस्कार करता हूं ॥ ३२९॥ इस प्रकार आचार्य परम्परागत त्रिलोकप्रज्ञप्ति में तिर्यग्लोकस्वरूपनिरूपणप्रज्ञप्ति नामक पांचवां महाधिकार समाप्त हुआ ।
१ द णराण रयणदीओ, व णरणारयदीओ.
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