Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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५९८]
तिलोयपण्णत्ती
[५.२८.
खेज्जा लोगा, रासी वि य संखेजलोगमेत्तो जादो। पुणो उठ्ठिदमहारासि विरलिदूण तत्थ एकेकस्स रूवस्स उहिदमहारासिपमाणं दादूण वग्गिदसंवग्गिदं करिय सलागरासीदो अवरेगरूवमवणेयव्वं । तावे अण्णोण्णगुणगारसलागा दोषिण, वग्गसलागा अद्वच्छेदणयसलागा रापी च असंखेजा लोगा। एवमेदेण कमेण णेदवं जाव लोगमेत्तसलागरासी समत्तो त्ति | तावे अण्णोण्णगुणगारसलागपमाणं लोगो, सेसतिगमसंखेजा लोगा। पुणो उठ्ठिदमहारासिं विरलिदूण तं चैव सलागभूदं ठविय विरलिय एकेकस्स रूवस्स उप्पण्णमहारासिपमाणं दादूण वग्गिदसंवग्गिदं करिय" सलागरासीदो एगरूवमवणेभव्वं । तावे अण्णोण्णगुणगारसलागा लोगो रूवाहिओ, सेसतिगमसंखेजा लोगा। पुणो उप्पणरासिं विरलिय रूवं पडि उप्पण्णरासिमेव दादण यग्गिदसंवग्गिदं करिय सलागरासीदो अण्णेगरूवमवणेदव्वं । तावे अण्णोण्णगुणगारसलागा लोगो दुरूवाहिमओ , सेसतिगमसंखेज्जा लोगा । एवमेदेण कमेण दुरूवूणुक्कस्पसंखेज्जलोगमेत्तसलागासु दुरूवाहिय
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वह राशि भी असंख्यात लोकप्रमाण होती है । पुनः उत्पन्न हुई इस महाराशिका विरलन करके उसमेंसे एक एक रूपके प्रति इसी महाराशिप्रमाणको देकर और वर्गितसंवर्गित करके शलाकाराशिमेंसे एक अन्य रूप कम करना चाहिये । इस समय अन्योन्यगुणकारशलाकायें दो और वर्गशलाका एवं अर्धच्छेदशलाका राशि असंख्यात लोकप्रमाण होती है । इस प्रकार जब तक लोकप्रमाण शलाकाराशि समाप्त न हो जावे तब तक इसी क्रमसे करते जाना चाहिये । उस समय अन्योन्यगुणकारशलाकाओंका प्रमाण लोक और शेष तीनों राशियों अर्थात् उस समय उत्पन्न हुई महाराशि, उसकी वर्गशलाकाओं और अर्धच्छेदशलाकाओंका प्रमाण असंख्यात लोक होता है। पुनः उत्पन्न हुई इस महाराशिका विरलन करके इसे ही शलाकारूपसे स्थापित करके विरलित राशिके एक एक रूपके प्रति उत्पन्न महाराशिप्रमाणको देकर और वर्गितसंवर्गित करके शलाकाराशिसे एक रूप कम करना चाहिये । तब अन्योन्यगुण कारशलाकायें एक अधिक लोकप्रमाण और शेष तीनों असंख्यात लोकप्रमाण ही रहती हैं । पुनः उत्पन्न राशिका विरलन करके एक एक रूपके प्रति उत्पन्न राशिको ही देकर और वर्गितसंवर्गित करके शलाकाराशिमेंसे अन्य एक रूप कम करना चाहिये । तब अन्योन्यगुणकारशलाकायें दो रूप अधिक लोकप्रमाण और शेष तीनों राशियां असंख्यात लोकप्रमाण ही रहती हैं। इस प्रकार इस क्रमसे दो कम उत्कृष्ट संख्यात लोकप्रमाण अन्योन्यगुणकारशलाकाओंके दो अधिक लोकप्रमाण
३ द य लोगा.
४ द ब वग्गिदकरिय.
१द इहिद°, ब ईटिद. २द ब ता जहं. - ५द ब दूरूवाणुक्कस्ससंखेज्जलोगमेत्तलोगसलागासु.
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