Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-५. २८० ]
पंचमो महाधियारो
[६०७
पदिदिद: a = a रिण = ।
बादरणिगोदअपदिट्रिद = aरिण = ।
पुणो आवलियाए असंखेज्जदिभागेण पदरंगुलमवहारिय लद्धेण जगपदरे भागं घेत्तूण लद्धं = ।
65
तं आवलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडियाणेगखंड पुधं ठविय सेसबभागे घेत्तण चत्तारि समपुंज कादूण पुधं ठवेयध्वं' । पुणो आवलियाए असंखेज्जदिभागे विरलिदण अवाणदएगखंडं समखंडं करिय दिण्णे तत्थ बहुखंडे पढमपुंजे पक्खित्ते बेइंदिया होति । पुणो आवलियाए असंखेज्जदिभागे विरलिदूण दिण्णसेससमखंडं करिय दादूण तत्थ बहुभागे बिदियपुंजे पखित्ते तेइंदिया होति । पुब्वविरलणादो संपहि विरलणा किं सरिसा किं साधिया किं ऊणेत्ति पुच्छिदे णत्थि एत्थ उवएसो । पुणो तप्पाउग्ग
उदाहरण- बादर निगोद अप्रतिष्टित प्रत्येकशरीर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त जीवराशि
= अप्र.प्र.श. व. कायिक जीवराशि - अप्र.प्र. श. व. कायिक पर्याप्त जीवराशि = ( = a)-/ = प ९ ९ ९ ।
= ( = a)-
ta-११)
___ बादर-निगोद-प्रतिष्ठित प्रत्येकशरीर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त जीवराशि = सप्र. प्र. श. व. कायिक जीवराशि- सप्र.प्र. श. व. कायिक पर्याप्त जीवराशि = ( = a = a)
ma १
पुनः आवलीके असंख्यातवें भागसे भाजित प्रतरांगुलका जगप्रतरमें भाग देनेपर जो लब्ध आवे उसे आवलीके असंख्यात भागसे खंडित कर एक भागको पृथक् स्थापित करके और शेष बहुभागको ग्रहण करके उसके चार समान पुंज करके पृथक् स्थापित करना चाहिये । पुनः आवलीके असंख्यातवें भागका विरलन करके अपनीत एक खण्डके समान खण्ड कर देनेपर उसमेंसे बहुभागको प्रथम पुंजमें मिला देनेपर दोइन्द्रिय जीवोंका प्रमाण होता है । पुनः आवलीके असंख्यातें भागका विरलन करके देनेसे अवशिष्ट रही राशिके समान खण्ड करके देनेपर उसमेंसे बहुभागको द्वितीय पुंजमें मिलानेसे तीनइन्द्रिय जीवोंका प्रमाण होता है। इस समयका विरलन पूर्व विरलनसे क्या सदृश है, क्या साधिक है, किं वा न्यून है, इस प्रकार पूछनेपर यही उत्तर है कि इसका उपदेश नहीं है । पुनः तत्प्रायोग्य आवलीके असंख्यातवें भागका विरलन
१द ब द्ववेयंतये.
२ द ब पक्खेत्ते.
३द ब विरलगाउ.
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