Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-५.२९० ]
पंचमो महाधियारो
[ ६११
दे उक्कसाऊ पुन्वावरविदेहजादे तिरियाणं । कम्मावणिपडिबद्धे बाहिर भागे सयंपहगिरीदो' ॥ २८४ तत्थेव सव्वकालं केई जीवाण भरहे एरवदे । तुरिमस्स पढमभागे एदेणं होदि उक्कस्सं ॥ २८५ उस्सासस्सद्वारसभागं एइंदिए जहण्णाऊ । वियलसयलिंदियाणं तत्तो संखेज्जसंगुणिदं ॥ २८६ वरमज्झिमवर भोगजतिरियाणं तियदुगेक्कपल्लाऊ । अवरे वरम्मि तत्तियमविणस्सरभोग भूवाणं ॥ २८७ प३ । २ । प१ ।
समयजदपुष्कोडी जहण्णभोगजजहण्णयं आऊ । उक्कस्समेगपल्लं मज्झिमभेयं अणेयविहं ॥ २८८ समयजुद पलमेक्कं जहण्णयं मज्झिमम्मि अवराऊ । उक्कस्सं दोपलं मज्झिमभेयं अणेयविदं ॥ २८९ समयजददोणिपलं जहण्णयं तिष्णिपलमुक्कस्सं । उक्कसियभोयभुए मज्झिमभेयं अणेयविहं ॥ २९०
उपर्युक्त उत्कृष्ट आयु पूर्वापर विदेहों में उत्पन्न हुए तिर्यंचोंके तथा स्वयंप्रभ पर्वतके बाह्य कर्मभूमि भागमें उत्पन्न हुए तिर्यंचोंके ही सर्व काल पायी जाती है । भरत और ऐरावत क्षेत्रके भीतर चतुर्थ कालके प्रथम भाग में भी किन्ही तियेचोंके उक्त उत्कृष्ट आयु पायी जाती है ।। २८४ - २८५ ॥
। आऊ सम्मत्ता ।
एकेन्द्रियकी जघन्यं आयु उच्छ्वासके अठारहवें भागप्रमाण और विकलेन्द्रिय एवं सकलेन्द्रिय जीवोंकी क्रमशः इससे उत्तरोत्तर संख्यातगुणी है ॥ २८६ ॥
उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य भोगभूमिज तिथंचोंकी आयु क्रमसे तीन, दो और एक प्रमाण है । अविनश्वर भोगभूमियों में जघन्य व उत्कृष्ट आयु उक्त तीन प्रकार ही है || २८७৷ प. ३ । प. २ । प. १ ।
जघन्य भोगभूमिजोंकी जघन्य आयु एक समय अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट एक पल्यप्रमाण है । मध्यम आयुके भेद अनेक प्रकार हैं ॥ २८८ ॥
मध्यम भोगभूमिमें जघन्य आयु एक समय अधिक एक पल्य और उत्कृष्ट दो पल्यप्रमाण है । मध्यम आयु अनेक प्रकार है ॥ २८९ ॥
उत्कृष्ट भोगभूमि मैं जघन्य आयु एक समय अधिक दो पल्य और उत्कृष्ट तीन पस्य प्रमाण है । मध्यम आयुके अनेक भेद हैं ॥ २९० ॥
आयुका वर्णन समाप्त हुआ ।
१ ब जदि. २ ब गिरिंदो.
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