Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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१२) तिलोयपण्णती
(५.२९१भाउवबंधणकाले' भूभेदट्ठीउरब्भयरिंसगा। चक्कमलो ब्व कसाया छल्लेस्सामज्झिमंसहि ॥ २९१ ने जुत्ता णरतिरिया सगसगजोगेहिं लेस्ससंजुत्ता । णारइदेवा केई णियजोगतिरिक्खमाउ बंधति ॥ २९२
भाउगबंधणभावा सम्मत्त । अष्पत्ती तिरियाणं गम्भजसमुच्छिमो त्ति पत्तेक्कं । सच्चित्तसीदसंवदसैदरमिस्सा य जहजोग्गं ॥ २९५ गम्भुम्भवजीवाणं मिस्सं सच्चिसणामधेयस्स । सीदं उगह मिस्सं संवदजोणिम्मि मिस्सा य ॥ २९४ संमुग्छिमजीवाणं सचित्ताचित्तमिस्ससीदुसिणा । मिस्सं संवदविवुदं णवजोणीओ हु सामण्णा ॥ २९५ पुडवीभाइचउक्के णिरिचदिरे सत्तलक्ख पत्तेक्कं । दस लक्खा रुक्खाणं छल्लक्खा वियलजीवाणं ॥ २९६ पंचक्खे चउलक्खा एवं बासटिलक्खपरिमाणं । णाणाविहतिरियाणं होंति हु जोणी विसेसेणं ॥ २९७
। एवं जोणी सम्मत्ता।
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आयुके बन्धकालमें भूरेखा, हड्डी, मेढ़ेके सींग और पहियेके मल (ओंगन) के सदृश क्रोधादि कषायोंसे संयुक्त जो मनुष्य और तिर्यंच जीव अपने अपने योग्य छह लेश्याओं के मध्यम अंशोंसे सहित होते हैं तथा अपने अपने योग्य लेश्याओंसे सहित कोई कोई नारकी व देव भी अपने योग्य तिथंच आयुका बन्ध करते हैं ॥ २९१-२९२ ॥
आयुबन्धक भावोंका कथन समाप्त हुआ । तिर्यचोंकी उत्पत्ति गर्म और सम्मूर्च्छन जन्मसे होती है। इनमेंसे प्रत्येक जन्मकी सचित्त, शीत, संवृत तथा इनसे विपरीत अचित्त, उष्ण, विवृत और मिश्र (सचित्तचित्त, शीतोष्ण और संवृतविवृत), ये यथायोग्य योनियां होती हैं ॥ २९३ ॥
गर्भसे उत्पन्न होनेवाले जीवोंके सचित्त नामक योनिमेंसे मिश्र (सचित्ताचित्त ), शीत, उष्ण, मिश्र (शीतोष्ण ) और संवृत योनिमेंसे मिश्र (संवृत-विवृत ) योनि होती है ॥२९॥
सम्मूर्छन जीवोंके सचित्त, अचित्त, मिश्र, शीत, उष्ण, मिश्र, संवृत, विवृत और संवृत-विवृत, ये साधारण रूपसे नौ ही योनियां होती हैं ॥ २९५ ॥
पृथिवी आदिक चार तथा नित्य व इतर निगोद इनमेंसे प्रत्येकके सात लाख, वृक्षोंके दश लाख, विकल जीवोंके छह लाख, और पंचेन्द्रियोंके चार लाख, इस प्रकार विशेष रूपसे नाना प्रकारके तियंचोंके ये बासठ लाख प्रमाण योनियां होती हैं ॥ २९६-२९७ ॥
इस प्रकार योनियोंका कथन समाप्त हुआ।
१द ब कालो. २६ ब भूभेट्टाउगुभयस्सिगा. ३द ब गम्भुविभव. ४ ब आउ'.
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