Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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तिलोयपण्णत्ती
[५. २८6
होदि [ सव्वजीवरासी रिण = रिण = a
] | तम्हि असंखेज्जलोगपरिमाणमवणिदे सेसं साधा
रणवणप्फदिकाइयजीवपरिमाणं होदि । १३ = । तं तप्पाउग्गअसंखेजलोगेण खंडिदे तत्थ एगभागो साहारणबादरजीवपरिमाणं होदि । १३ = । सेसबहुभागा साधारणसुहमरासिपरिमाणं
होदि । १३ = ८ । पुणो साधारणबादररासिं तप्पाउग्गअसंखेज्जलोगेण खंडिदे तत्थेग
भागं साधारणबादरपज्जत्तपरिमाणं होदि १३ = १ सेसबहभागा साधारणबादरअपज्जत्तरासिपरिमाण
इसमेंसे असंख्यात लोकप्रमाणको घटानेपर शेष साधारण बनस्पतिकायिक जीवोंका प्रमाण होता है।
उदाहरण- साधारण वनस्पतिकायिक जीवराशि = सामान्य वनस्पतिकायिक जीवराशिअसंख्यात लोकप्रमाण ( प्रत्येक वनस्पति जीवराशि ) = ( स. जी. रा.)
४
a
+ ( = = ४७२२)]- (= = :) = ( १३ = ).
इसे अपने योग्य असंख्यात लोकसे खण्डित करने पर उसमेंसे एक भाग साधारण बादर जीवे का प्रमाण होता है, और शेष बहुभाग साधारण सूक्ष्म जीवराशिका प्रमाण होता है । उदाहरण- साधारण बादर वनस्पति ( निगोद ) कायिक जीवराशि
साधारण वनस्पति कायिक जीवराशि । १३ = __ असंख्यात लोक
( 0 ) साधारण सूक्ष्म वनस्पति ( निगोद ) कायिक जीवराशि साधारण व. का. जी. राशि अ. लो. -. १ (१ असंख्यात लोक
१ पुनः साधारण बादर राशिको अपने योग्य असंख्यात लोकसे खण्डित करनेपर उसमेंसे एक भाग साधारण बादर पर्याप्त जीवोंका प्रमाण होता है, और शेष बहुभाग साधारण बादर अपर्याप्त जीवोंकी राशिका प्रमाण होता है।
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