Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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५७४ ] तिलोयपण्णत्ती
[५. २५९..अट्टमपक्खे अप्पाबहुगं वत्तइस्सामो- लवणसमुद्दस दौणिदिसरुदादो कालोदगसमुहस्स एयदिसरुंदवड्डी चउलक्खेणब्भहियं होदि ४०००००। लवणकालोदगसमुद्दाणं दोणिदिसलंदादो पोक्खरवरसमुदस्स एयदिसरुंदवडी बारसलक्खेणब्भहियं होदि १२००००० । एवं कालोदगसमुद्दप्पहुदि तत्तो उवरिमतदणंतरइच्छियरयणायराणं एयदिसरंदवड्डी हेट्ठिमसव्वजलरासीणं दोणिदिसरुंदवड्डीदो चउग्गुणं चउलक्खविहीणं होदूण गच्छइ जाव सयंभूरमण समुदो त्ति । तत्थ अंतिमवियप्पं वत्तइस्सामो- ५ सयंभूरमणस्प हेटिमसयल सायरागं दोणिदिसरुंदादो सयंभूरमगसमुहस्स एयदिसरुंदवड्डी रज्जूए बारसभागो पुणो तियहिदचउलखपंचहत्तरिसहस्सजोयगेहि अब्भहियं होदि। तस्स ढवणा । १२ धण जोयणाणि ४ ७५००° । तन्वड्डींग आणयणहेतुं इमं गाहासुत्तंइटोवहिविक्खंभे चउलक्खं मेलिदृण तियभजिथे । तीदरयगायरागं दोदिसलंदादु उवरिमेयदिसं ॥ २५९
उदाहरण-पु. द्वी. का विस्तार यो. १६ ला.४२-५ ला. * ३ = ९ ला. यो. जं. द्वी. और धात. का उभयदिशासम्बन्धी विस्तार ।
आठवें पक्षमें अल्पबहुत्वको कहते हैं- लवगसमुद्र के दोनों दिशाओंसम्बन्धी विस्तारकी अपेक्षा कालोदकसमुद्रके एक दिशासम्बन्धी विस्तारमें चार लाख अधिक वृद्धि हुई है१००००० । लवण और कालोदक समुद्र के दोनों दिशाओंसम्बन्धी सम्मिलित विस्तारकी अपेक्षा पुष्करसमुद्र के एक दिशासम्बन्धी विस्तारमें बारह लाख योजन अधिक वृद्धि हुई है१२०००००। इस प्रकार कालोदकसमुद्रसे लेकर उससे उपरिम तदनन्तर इच्छित समुद्रोंकी एक दिशासम्बन्धी विस्तारवृद्धि अवस्तन सब समुद्रोंकी दोनों दिशाओंसम्बन्धी विस्तारवृद्धिसे चार लाख कम चौगुणी होकर स्वयंभूरमणसमुद्र तक चली गई है। उनमेंसे अंतिम विकल्पको कहते हैं - स्वयंभूरमणसमुद्रके अधस्तन सम्पूर्ण समुद्रोंके दोनों दिशासम्बन्धी विस्तारकी अपेक्षा स्वयंभूरमणसमुद्रके एक दिशासम्बन्धी विस्तारमें राजुका बारहवां भाग और तीनसे भाजित चार लाख पचत्तर हजार योजन अधिक वृद्धि हुई है। उसकी स्थापना इस प्रकार है
राजु १३ + यो. ४७ ५००० । उस वृद्धिके लानेके हेतु यह गाथा सूत्र है
इष्ट समुद्रके विस्तारमें चार लाख मिलाकर तीनका भाग देने पर जो लब्ध आवे उतनी अतीत समुद्रोंके दोनों दिशाओं संबन्धी विस्तारकी अपेक्षा उपरिम समुद्रके एक दिशासम्बन्धी विस्तारमें वृद्धि होती है ॥ २५९ ।।
१द ब होवि कण. २ द ब इमा.
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