Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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--५.२५८)
पंचमी महाधियारी त्ति। तत्थ अंतिमवियप्पं वत्त इस्सामो- सयंभूरमणदीवस्स हेट्रिमसयलदीवाणं दोषिणदिसरंदसमूहादो सयंभूरमणदीवस्स एयदिसरुंदवड्डी चउवीलरूवेहिं भजिदरज्जू पुणो तियहिदपंचलक्खसत्ततीससहस्सपंचसयजोयणेहिं अब्भहियं होदि । तस्स ठवणा धण जोयणाणि ५ ३७.५ ० ० । तव्वडीणं भाणयणटुं गाहासुतंसगसगवासपमागं लक्खोणं तियहिदं दुलक्खजुदं । अहवा पणलक्खाहियवासतिभागं तु परिवडी । २५०
पुणो इच्छियदीवादो वा हेहिमसयलदीवाणं दोण्णिदिसलंदस्स समासो वि एक्कलक्खादिचउगुणं पंचलखेहिं अब्भहियं होऊण गच्छइ जाव भहिंदवरदीवो त्ति । तव्वड्डीणं आणयणहेदूं इम' गाहासूक्तंदुगुणियसगसगवासे पणलक्खं अवणिदण तियभजिदे। हेदिमदीवाण पुढं दोदिसदम्मि होदि पिंडफलं॥
गई है। इनमेंसे अन्तिम विकल्पको कहते हैं- स्वयंभूरमणद्वीपसे अधस्तन सम्पूर्ण द्वीपोंके दोनों दिशाओसम्बन्धी विस्तारकी अपेक्षा स्वयंभूरमणद्वीपके एक दिशासम्बन्धी विस्तारमें चौबीससे भाजित एक राजु और तीनसे भाजित पांच लाख संतीस हजार पांचसौ योजन अधिक वृद्धि हुई है। उसकी स्थापना इस प्रकार है-- राजु २४ + यो. ५ ३७५०० ।
उन वृद्रियोंको लाने के लिये गाथासूत्र
एक लाख कम अपने अपने विस्तारप्रमाणमें तीनका भाग देकर दो लाख और मिलानेपर उस वृद्धिका प्रमाण होता है, अथवा- पांच लाख अधिक विस्तारमें तीनका भाग देनेपर जो लव्ध आवे उतना उक्त वृद्धि का प्रमाण होता है ॥ २५७ ॥
उदाहरण-पु. द्वी. बि. १६ ला.-१ ला. : ३ + २ ला.=७ ला. वृद्धि । अथवा -- पु. द्वी. वि. १६ ला. + ५ ला. ३ = ७ ला. वृद्धिप्रमाण ।
__पुनः इच्छित द्वीपसे अबस्तन समस्त द्वीपोंके दोनों दिशाओंसम्बन्धी विस्तारका योग भी एक लाखको आदि लेकर चौगुणा और पांच लाख अधिक होकर अहीन्द्रवरद्वीप तक चला जाता है । उस वृद्धिको लाने के लिये यह गाथासूत्र है
अपने अपने दुगुणे विस्तारमेंसे पांच लाख कम करके शेषमें तीनका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना अधस्तन द्वीपोंके दोनों दिशाओंसंबन्धी विस्तारका योगफल होता है ॥ २५८ ॥
१द ब इमा. २द हिंद फलं, ब सिंदफलं.
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