Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-५. २५३ ]
पंचमो महाधियारों
[ ५७१
इच्छियदीवे रुंदं तिगुणं दलिदूण तिण्णिलक्खूणं । तिलक्खूणतिगुणवासे सोहिय दलिदे हुवे बड्डी ॥ २५३
छपखे अप्पा बहुगं वत्तइस्सामो । तं जहा - जंबूदीवस्स अद्ध रुंदादो धादइडस्स एयदिस रुंद आउट्ठलक्खेण भहियं होदि ३५०००० । जंबूदीवस्स अद्वेणं मिलिदधादईसंडस्स एयदिसरुंदादो पोक्खरवरदीवस्स एयदिसरुंदवड्ढी एयारसल क्खपण्णास सहस्सजोयणेहिं अन्भहियं होइ ११५०००० । एवं धादईसँडप्प हुदिइच्छिय दीवस्स एयदिसरुंदवहीदो तदनंतर उवरिमदीवस्स वड्डी चउगुणं अड्डाइज्जलक्खेणूर्ण होण गच्छ जब सयंभूरमणदीओ ति । तत्थ अंतिमवियप्पं वत्तइस्लामो - [ सयंभूरमणदीवस्स हेट्ठिमसयलदीवाणं एयदिसदसमूहादो सयंभूरमणदीवस्स एयदिस रुंदबड्डी] चउरासीदिरूवेहिं भजिदसेढी पुणो तियहिदतिण्णिलक्खपणुवीससहस्सजोयणेहिं अब्भहियं होइ । तस्स ठवणा ८४ धण जो ३२५००० । तन्वङ्कीर्ण आणायण गाहासुत्तं -
इस वृद्धिप्रमाणको लाने के लिये यह गाथा सूत्र है- इच्छित द्वीप के तिगुणे विस्तारको आधा करके उसमेंसे तीन लाख कम करदेने पर जो शेष रहे उसे तीन लाख कम तिगुणे विस्तारमेंसे घटाकर शेषको आधा करनेपर वृद्धिका प्रमाण होता है ।। २५३ ॥
उदाहरण - पुष्कर. वि. १६ लाख x ३ ÷ २
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३ लाख = ४५ लाख; ४५ लाख छठे पक्षमें अल्पबहुत्वको कहते हैं । वह इस प्रकार है-- जम्बूद्वीपके अर्थ विस्तारकी अपेक्षा धातकीखण्डका एक दिशासम्बन्धी विस्तार साढ़े तीन लाख योजन अधिक है३५०००० | जंबूद्वीप के अर्थ विस्तार सहित धातकीखण्ड के एक दिशासम्बन्धी विस्तारकी अपेक्षा पुष्करवरद्वीप के एक दिशासम्बन्धी विस्तारकी वृद्धि ग्यारह लाख पचास हजार योजन अधिक है- ११५०००० | इस प्रकार घातकीखण्डप्रभृति इच्छित द्वीपके एक दिशासम्बन्धी विस्तारकी अपेक्षा तदनन्तर अग्रिम द्वीप के विस्तारमें अढ़ाई लाख कम चौगुणी वृद्धि स्वयम्भूरमणद्वीप तक होती चली गई है । उनमेंसे अन्तिम विकल्पको कहते हैं- स्वयंभूरम द्वीपसे पहिले के समस्त द्वीपों के एक दिशासम्बन्धी विस्तार की अपेक्षा स्वयंभूरमणद्वीप के एक दिशासम्बन्धी विस्तार में चौरासी रूपोंसे भाजित जगश्रेणी और तीन से भाजित तीन लाख पच्चीस हजार योजन अधिक वृद्धि हुई है । उसकी स्थापना इस प्रकार है -
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लाख
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३ लाख = २१ लाख ४८ २१ लाख = २४००००० वृद्धि ।
जगश्रेणी ÷ ८४ + ३२५००० ।
३
उन वृद्वियों को लाने के लिये गाथासूत्र -
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