Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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५६६ ]
तिलोय पण्णत्ती
[ ५.२४५
सत्तर समपक्खे धादइडप्पहुदिअभंतरिमदीवाणं खेत्तफलादो तदनंतर बाहिरणिविदीवस्स तफलम्म वड्डी गवेजिइ ।
अट्ठारसमपक्खे इच्छियदीवस्स वा तरंगिणीणाहस्स वा आदिममज्झिमबाहिरसूईंणं परिमाणादो तदनंतर बाहिरणिविट्ठदीवस्स वा तरंगिणीणाहस्स वा आदिममज्झिमबाहिरसूईणं पत्तेक्कं बडी गवेसिज्जइ । उणवीसमिपक्खे इच्छियदीवणिण्णगाणाहाणं आयामादो तदणंतरवाहिरणिविट्ठदीवस्स वा णीर- ५ • रातिस्स वा आयामवड्डी गवेसिजइ ।
तत्थ पढमपक्खे अप्पा बहुगं वत्तइस्लामो । तं जहा - जंबूदीवस्स सयलविक्खभादो लवण समुहस्स एयदिसरुदं एक्कलक्खेण भहियं होइ । जंबूदीवेण भहियलवणसमुहस्स एयदिसरुंदाद। धादसंडस एयदिसरुदं एकलक्खेण भहियं होऊण गच्छइ जाब सयंभूरमणसमुहोति । तवडीभाणयणहेतुं इमा सुत्तगाहा— इच्छियदीवहीणं चउगुणरुंदम्मि पढमसूइजुदं । तियभजिदं तं सोधसु दुगुणिदरुंद सा हवे वड्डी ॥२४५
सत्तरहवें पक्षमें धातकीखण्डप्रभृति अभ्यंतर द्वीपोंके क्षेत्रफलसे उनके अनन्तर बाह्य भागमें स्थित द्वीप क्षेत्रफल में होनेवाली वृद्धिको खोजा जाता है ।
अठारहवें पक्षमें इच्छित द्वीप अथवा समुद्रकी आदि, मध्य और बाह्य सूची के प्रमाणसे उसके अनन्तर बाह्य भागमें स्थित द्वीप अथवा समुद्रकी आदि, मध्य व बाह्य सूचियों में से प्रत्येककी वृद्धिको खोजा जाता है ।
उन्नीसवें पक्षमें इच्छित द्वीप समुद्रों के आयामसे उनके अनन्तर बाह्य भागमें स्थित द्वीप अथवा समुद्र के आयामकी वृद्धिको खोजा जाता है I
उपर्युक्त उन्नीस विकल्पोंमेंसे प्रथम पक्ष में अल्पबहुत्वको कहते हैं । वह इस प्रकार है
जम्बूद्वीप समस्त विस्तार की अपेक्षा लवणसमुद्रका एक दिशासम्बन्धी विस्तार एक लाख योजन अधिक है । जम्बूद्वीप और लवणसमुद्रके एक दिशासम्बन्धी सम्मिलित विस्तारकी अपेक्षा घातकीखण्डका एक दिशासम्बन्धी विस्तार एक लाख योजन अधिक है । इस प्रकार स्वयम्भूरमणसमुद्रपर्यन्त अभ्यन्तर द्वीप समुद्रों के सम्मिलित एक दिशासम्बन्धी विस्तार की अपेक्षा उनके आगे स्थित द्वीप अथवा समुद्रका विस्तार एक एक लाख योजन अधिक है । इस वृद्धिप्रमाणको लाने के लिये यह गाथा सूत्र है
इच्छित द्वीप - समुद्रोंके चौगुणे विस्तार में आदि सूचीके प्रमाणको मिलाकर तीनका भाग देनपर जो लब्ध आवे उसे विवक्षित द्वीप- समुद्र के दुगुणे विस्तारमेंसे कम करदेने पर शेष बृद्धिका प्रमाण होता है ॥ २४५ ॥
१६ व दीवोवहीणं.
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