Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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तिलीयपणत्ती
[५. १४६- पंचसयजायणाई तुंगा तम्मतमूलविक्खंभा । तद्दलउवरिमरुंदा ते कूडा वेदिवणजुत्ता ॥ १४६
५००। ५०० । २५०। ताणोपरि भवणाणि गोदमदेवस्स गेहेसरिसाणिं । जिणभवणभूसिदाणिं विचित्तरूवाणि रेहति ॥ १४७ प्रदेसु दिसाकण्णा णिवसंति णिरुवमेहिं रूवेहिं । विजया य वइजयंता जयंतणामा वराजिदया ॥ १४८ गंदाणंदवदीमो णंदुत्तरणंदिसेण ति । भिंगारधारिणीओ ताओ जिणजम्मकल्लाणे ॥ १४९ दक्खिणदिसाए फलियं रजदं कुमुदं च णलिणपउमाणिं । चंदक्खं वेसमणं वेरुलियं अट्ठ कूडाणि ॥ १५० उच्छेह पहुंदीहि ते कूडा होंति पुवकूड ब्व । एदेसु दिसाकण्णा वसंति इच्छासमाहारा ॥ १५१ सुपइण्णा जैसंघरया लच्छीणामा य सेसवदिणामा । तह चित्तगुत्तदेवी वसुंधरा दप्पणधराओ ॥ १५२ होति बमोष सत्थियमंदरहेमवदरज्जणामाणि । रज्जुत्तमचंदसुदंसणाणि पश्छिमदिसाए कडाणि ॥ १५३ पुग्योदिदाणं वासप्पडदीहिं होति सारिच्छा । एदेसुं कूडेसुं कुणंति वासं दिसाकण्णा ॥ १५४ इलणामा सुरदेवी पुढविपउमाओं एक्कणासा य । णवमी सीदा भद्दा जिणजणणीए छत्तधारीओ॥ १५५
वेदी व वनोंसे संयुक्त ये कूट पांच सौ योजन ऊंचे और इतनेमात्र मूलविस्तार व इससे आधे उपरिम विस्तारसे सहित हैं ॥ १४६॥
___ उत्सेध ५०० । मूलविष्कम्भ ५०० । उपरिमविष्कम्भ २५० ।
इन कूटोंके ऊपर जिनभवनोंसे भूषित और विचित्र रूपवाले गौतम देवके भवनसमान भवन विराजमान हैं ॥ १४७ ॥
इन भवनोंमें अनुपम रूपसे संयुक्त विजया, वैजयन्ता, जयन्ता, अपराजिता, नन्दा, नन्दवती, नन्दोत्तरा और नन्दिषेणा नामक दिक्कन्यायें निवास करती हैं। ये जिनभगवान्के जन्मकल्याणकमें झारीको धारण किया करती हैं ॥ १४८-१४९ ॥
स्फटिक, रजत, कुमुद, नलिन, पद्म, चन्द्र, वैश्रवण और वैडूर्य, ये आठ कूट दक्षिणदिशामें स्थित हैं ॥ १५० ॥
ये सब कूट उंचाई आदिकमें पूर्व कूटोंके ही समान हैं। इनके ऊपर इच्छा, समाहारा, सुप्रकीर्णा, यशोधरा, लक्ष्मी, शेषवती, चित्रगुप्ता और वसुंधरा नामकी आठ दिक्कन्यायें निवास करती हैं। ये सब जिनजन्मकल्याणकमें दर्पणको धारण किया करती हैं ॥ १५१-१५२ ॥
___ अमोघ, खस्तिक, मन्दर, हैमवत, राज्य, राज्योत्तम, चन्द्र और सुदर्शन, ये आठ कूट पश्चिमदिशामें स्थित हैं ॥ १५३ ॥
ये कूट विस्तारादिकमें पूर्वोक्त कूटोंके ही समान हैं । इनके ऊपर इला, सुरादेवी, पृथिवी, पद्मा, एकनासा, नवमी, सीता और भद्रा नामक दिक्कन्यायें निवास करती हैं । ये दिक्कन्यायें जिनजन्मकल्याणकमें जिनमाताके ऊपर छत्रको धारण किया करती हैं ॥१५४-१५५॥
१ व ब चंदसदसणाणी.
२द पुविपउमाओ य, व पुविपउमाउ य.
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