Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-५. १४५.] पंचमो महाधियारो
[५४४ ताणोवरिमपुरेसुं कोंडलदीवस्स अहिवई देवा । वितरया' णियजोगं बहुपरिवारहिं संजुत्ता' ॥ १८ अभंतरभागेसुं एदाणि जिणिददिब्वकूडाणिं । एक्केक्काणं अंजणगिरिजिणमंदिरसमाणाणिं ॥ १३९ एक्केक्का जिणकूडा चेटुंते दक्खिणुत्तरदिसासुं। ताणि अंजणपब्वयजिणिंदपासादसारिच्छा ॥१४०
पाठान्तरम् । तेरहमो रुचकवरो दीवो चेटेदि तस्स बहुमज्झे । अस्थि गिरी रुचकवरो कणयमओ चकवालेणं ॥ १४॥ सव्वस्स तस्स रुंदो चउसीदिसहस्सजोयणपमाणं । तम्मेत्तो उच्छेहो एक्कसहस्सं पि गाढत्तं ॥ १४२ मूलोवरिम्मि भागे तडवेदीउववगाइं चेटुंति । तग्गिरिणो वणवेदिप्पहुदीहिं अधियरम्माई ॥११३ तग्गिरिउवरिमभागे चउदाला होंति दिवकूडाणिं । एदाणं विण्णासं भासेमो आणुपुग्वीए ॥१४४ कणयं कंचणकूडं तवणं सत्थैियदिसासुभदाणि । अंजणमूलं अंजणवज्ज' कूडाणि अट्ट' पुवाए ॥ १४५
इन कूटोंके ऊपर स्थित भवनोंमें कुण्डल द्वीपके अधिपति व्यन्तर देव अपने योग्य बहुत परिवारसे संयुक्त होकर निवास करते हैं ॥ १३८ ॥
इन एक एक कूटोंके अभ्यन्तर भागोंमें अंजनपर्वतस्थ जिनमान्दरोंके समान दिव्य जिनेन्द्रकूट हैं ॥ १३९॥
उनके उत्तर-दक्षिण भागोंमें अंजनपर्वतस्थ जिनेन्द्रप्रासादोंके सदृश एक एक जिनकट स्थित हैं ॥ १४०॥
पाठान्तर । तेरहवां द्वीप रुचकवर है । इसके बहुमध्यभागमें मण्डलाकारसे सुवर्णमय रुचकवर पर्वत स्थित हैं ॥१४१॥
उस सब पर्वतका विस्तार चौरासी हजार योजन, इतनी ही उंचाई, और एक हजार योजनप्रमाण अवगाह है ॥ १४२ ॥
उस पर्वतके मूल व उपरिम भागमें वनवेदी आदिकसे अधिक रमणीय तटवेदियां व उपवन स्थित हैं ॥ १४३॥
इस पर्वतके उपरिम भागमें जो चवालीस दिव्य कूट हैं, उनके विन्यासको अनुक्रमसे कहता हूं ॥ १४४ ॥
कनक, कांचनकूट, तपन, खस्तिकदिशा, सुभद्र, अंजनमूल, अंजन और वज्र, ये आठ कूट पूर्वदिशामें हैं ॥१४५ ॥
१९ ब चितरया २९ ब संजुत्तं. ३द ब संधियदिसा. ४द अंजणमूलं अजवजं. व अजमूल अंजवजं. ५ब अड.
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