Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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तिलोयपण्णत्ती
[ ५.१९४
सब्वम्भंतरमुक्खप्पासादुस्सेहवासगाढसमा । आदिमर्दुगमंडलए तस्स दलं तदिय - तुरिमम्मि || १९४ पंचमिए छट्टीए तद्दलमेत्तं हुवेदि उदयादी । एक्केके पासादे एक्केक्का वेदिया विचित्तयरा ॥ १९५ बेकसुच्छेहादिं पंचसयाणिं धणूणि वित्थिण्णा । आदिलयपासादे पढमे बिदियम्मि तम्मेत्ता ॥ १९६ पुग्विवेदिअद्धं तदिए तुरिमम्मि होंति मंडलए । पंचमिए छट्ठीए तस्सद्धपमाणवेदीओ ॥ १९७ गुणसंकमणसरुवट्टिदाण सव्वाण होदि परिसंखा । पंचसहस्सा चउस संजुत्ता एक्कसट्टी य ॥ १९८
५४६१ ।
आदिमपासादादो' उत्तरभागे द्विदा सुधम्मसभा । दलिदपणुवीसजोयणदीहा तस्सद्धवित्थारा ॥ १९९ २५ । १५ ।
५५४ ]
आदिके दो मंडलों में स्थित प्रासादोंकी उंचाई, विस्तार और अवगाह सबके बीच में स्थित मुख्य प्रासादकी उंचाई, विस्तार और अवगाहके समान है । तृतीय और चतुर्थ मंडलके प्रासादों की उंचाई आदि उससे आधी है । इससे भी आधी पंचम और छठे मण्डलके प्रासादोंकी उंचाई आदिक है । प्रत्येक प्रासादके विचित्रतर एक एक वेदिका है । १९४-१९५॥
I
प्रथम प्रासाद के आश्रित वेदी दो कोश उंचाई आदि से सहित और पांच सौ धनुष विस्तीर्ण है । प्रथम और द्वितीय मंडलमें स्थित प्रासादोंकी वेदियां भी इतनीमात्र उंचाई आदि सहित हैं ॥ १९६॥
तृतीय व चतुर्थ मण्डल के प्रासादोंकी वेदिकाकी उंचाई व विस्तारका प्रमाण पूर्वोक्त वेदियोंसे आधा और इससे भी आधा प्रमाण पांचवें व छठे मण्डलके प्रासादोंकी वेदिकाओंका है ॥ १९७ ॥
गुणितक्रमसे स्थित इन सब भवनों की संख्या पांच हजार चार सौ इकसठ हैं ॥ १९८ ॥ ५४६१ ।
प्रथम प्रासादके उत्तर भाग में पच्चीस योजनके आधे अर्थात् साढ़े बारह योजन लंबी और इससे आधे विस्तारवाली सुधर्मसभा स्थित है ॥ १९९ ॥ लंबाई २५ । विस्तार २५ यो ।
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१ ब दुग.
२ द व गुणसंकरण. ३ ब चउस्सय. ४ द पासादो.
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