Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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५५२] तिलोयपण्णत्ती
[५. १८१उच्छेहजोयणेणं पुरीओ बारससहस्सरंदाओ। जिणभवणभूसिदाओ उपवणवेदीहिं जुत्ताओ ॥ १८॥
१२०००। पण्णत्तरिदलतुंगा पायारा जोयणद्धमवगाढा । सव्वाणं णयरीणं णचंतविचित्तधयमाला । १८२
कंचणपायारागं वररयणविणिम्मियाण भूवासो । जोयगपणुवीसदलं तञ्चउभागो य मुहवासी ॥ १८३
एक्कक्काए दिसाए पुरीण पणुवीसगोउरदुवारे । जंबूणदणिम्मविदा मणितोरणथंभरमणिज्जा ॥ १८४ बासहि जोयणाणि ताणं हवंति पुरोवरिपुरागं । उदओ तद्दलमेत्तो रुंदो गाढो दुवे कोसा ॥ १८५
६२।३१ को २ । मझे चेदि रायं विचित्तबहुभवणएहि अदिरम्म। जोयणसदाणि बारस वासजुदं एक्ककोसउच्छेहो ॥ १८६
१२०० । को १ ।
ये नगरियां उत्सेध योजनसे बारह हजार योजनप्रमाण विस्तारसे सहित, जिनभवनोंसे विभूषित और उपवनवेदियोंसे संयुक्त हैं ॥ १८१ ॥ विस्तार १२०० यो.।
इन सब नगरियोंके प्राकार पचहत्तरके आधे ( साढ़े सैंतीस ) योजन ऊंचे, अर्ध योजनप्रमाण अवगाहसे सहित, और फहराती हुई विचित्र ध्वजाओंके समूहसे संयुक्त हैं ॥ १८२॥
उत्सेध ७३ । अवगाह ३ । उत्तम रत्नोंसे निर्मित इन सुवर्णप्राकारोंका भूविस्तार पच्चीसके आधे ( साढ़े बारह ) योजन और मुखविस्तार पच्चीसका चतुर्थ भाग अर्थात् सवा छह योजनमात्र है ॥ १८३ ॥
भूविस्तार २३ । मुखविस्तार २५ । इन नगरियोंकी एक एक दिशामें सुवर्णसे निर्मित और मणिमय तोरणस्तम्भोंसे रमणीय पच्चीस गोपुरद्वार हैं ॥ १८४॥
___ इन नगारयोंके उत्तम भवनोंकी उंचाई बासठ योजन, इससे आधा विस्तार और अवगाह दो कोशमात्र है ॥ १८५॥
उत्सेध ६२ । विस्तार ३१ । अवगाह को० २ । नगारयोंके मध्यमें विचित्र बहुत भवनोंसे अतिशय रमणीय, बारहसौ योजनप्रमाण विस्तारसे सहित और एक कोश ऊंचा राजांगण स्थित है ।। १८६ ॥
विस्तार १२०० । उत्सेध को० १ ।
१द ब उदए. २द व कोसो. ३ द ब विचित्तवइभवणएहिं.
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