Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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(८)
त्रिलोकप्रतिको प्रस्तावना __ आगे सातवां पुष्कर द्वीप है। इसके बीचोंबीच मानसोत्तर पर्वत वलयाकारसे स्थित है, जिसके कारण इस द्वीपके दो खण्ड हो गये हैं। इनमें मानसोत्तर पर्वतके बाझ खण्डका नाम महावीर वर्ष और अभ्यन्तर खण्डका नाम धातकी वर्ष है। इन दो वर्षोंके अधिपति क्रमशः महाराज सबनके महावीर और धातकी नामक दो पुत्र हुए। इस द्वीपमें रहनेवाले रोग, शोक एवं राग-द्वेषसे रहित हैं। आयु उनकी दश हजार वर्ष प्रमाण है। उनमें न तो उत्तम-अधमका भाव है और न बध्य-बधक भाव ही है। इसी प्रकार वहां न वर्णव्यवस्था है और न सत्य एवं मिथ्याका व्यवहार ही है । इस द्वीपमें पर्वत व नदियां नहीं हैं।
इस द्वीपको वेष्टित करके स्वादूदक समुद्र स्थित है। अब यहांसे आगे प्राणियोंका निवास नही है। स्वादूदक समुद्रके आगे उससे दूने विस्तारवाली सुवर्णमयी भूमि है। उसके आगे दश हजार योजन विस्तृत और इतना ही ऊंचा लोकालोक पर्वत है। इसको चारों ओरसे वेष्टित करके तमस्तम स्थित है । यह तमस्तम भी चारों ओरसे अण्डकटाह द्वारा वेष्टित है । इस अण्डकटाइके साथ उपर्युक्त द्वीप-समुद्रोंको गर्भ में रखनेवाले समस्त भूमण्डलका विस्तार पचास करोड़ योजन और उंचाई सत्तर हजार योजन प्रमाण है ।
यहां नीचे दश-दश हजार योजनके ये सात पाताल हैं-१ अतल, २ वितल, ३ नितल, ४ गमस्तिमत्, ५ महातल, ६ सुतल और ७ पाताल । ये पाताल क्रमश: शुक्ल, कृष्ण, अरुण, पीत, शर्करा, शैल और कांचन स्वरूप हैं। यहां उत्तम प्रासादोंसे सुशोभित भूमियां हैं जहाँ दानव, दैत्य, यक्ष एवं नाग आदि सैकडों जातियां निवास करती है।
पातालोंके नीचे विष्णु भगवान्का शेष नामक तामस शरीर स्थित है जो 'अनन्त' कहा जाता है। यह शरीर हजार शिरों (फों) से संयुक्त होकर समस्त भूमण्डलको धारण करता हुवा पातालमूलमें स्थित है। कल्पान्तमें इसके मुखसे निकली हुई संकर्षणात्मक रुद्र विषानि. शिखा तीनों लोकोंका मक्षण करती है |
पृथिवी और जलके नीचे रौरव, सूकर, रोध, ताल, विशासन, महाग्याल, तप्तकुम्भ, रूषण, विलोहित, रुधिर, वैतरणि, कमीश, कृमिमोजन, असिपत्रवन, कृष्ण, लालाभक्ष, दारुण,
. इसे जैन ग्रन्थों में तीसरा द्वीप कहा गया है। मानुषोत्तर पर्वतकी स्थिति यहां भी इसी प्रकार ही स्वीकार की गई है। २ जैन ग्रन्थोंमें 'धातकीखण्ड ' यह दूसरे दीपका नाम बतलाया गया है।
३ जैन ग्रन्थों में मानुषोत्तर पर्वतके आगे केवल मनुष्योंका ही अभाव बतलाया गया है। ४ जैन अन्धानुसार अधोलोकमें रत्नप्रमा, शर्कराप्रभा आदि ७ पृथिवियां बतलाई है। इनमेंसे रत्मप्रमाके परमाग एवं पंकमागमें अमरकुमार-नागकुमारादि १० भवनवासी तथा यक्षावि ८ जातिके व्यन्तर रहते हैं।
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