Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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शुद्धि-पत्र
५३५
नन्दिप्रम
नन्दिप्रभु जिणचरियणालय
[जिणचरियणाडयं ] वदृति
[वडति] पडिभणामो
पडि भणामो दिशाओंमें चार दिव्य प्रासाद हैं। दिशाओंमें उत्पन्न-अनुत्पन्न देवोंके (१) उनसे आगे
चार दिव्य प्रासाद हैं। आगे महिंदवर
[अहिंदवर]
२०
५५४ ५६८
सलागादु
सलागा दु विसेसाहिया रिण - a१. रिण विसेसाहिया : a1.रिण
वाचदि तप्पाओग्गमसंखज्जपदेस वरचदि रूऊणपलिदोवमस्स भर्सवडिदो ति।
खेज्जदिभागेण गुणिदिदरणिगोदपदिद्विदणिवत्तिपज्जत्तठक्कसोगाहणं पुणो तप्पाओग्गासंखज्जपदेसपरिहीणं तदुवरि
वडिदो त्ति । २१-२५ विकल्प उसके योग्य x x x विकल्प तब तक चालू रहता है चालू रहता है।
जब तक एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणित इतरनिगोद-प्रतिष्ठित निवृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना पुनः उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोसे हीन उसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त नहीं
हो जाती। उत्कृष्ट
जघन्य १५ अवधिज्ञानकी शक्तियां, "उंचाई, अवधिज्ञान, शक्ति, "उंचाई, 'संख्या
"संख्या, एकै समयमें जन्म, भैरण एक समयमें जन्म-मरण रयणट्ठा
रयणड्डा
६.१
एदेसु
५६ १५६
. . २
दसणगहणाण...... भावसामाणि कदी भजिदे
[दसणगहणस्स..."भावणसमा कदीभजिदे
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