Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-५. ६१ ] पंचमो महाधियारो
[५३७ तदियपणसत्तदुखदोइगिछत्तियसुण्णएकअंककमे । जोयणया गंदीसरअन्भंतरपरिहिपरिमाण ॥ ५५
१०३६१२०२७५३ । बाहत्तरिजुददुसहसकोडीतेत्तीसलक्खजोयणया। चउवण्णसहस्साइं इगिसयणउदी य बाहिरे परिही॥ ५६
२०७२३३५४१९० । दीसरबहुमज्झे पुवदिसाए हुवेदि सेलवरो। अंजणगिरि त्ति खादो णिम्मलवरइंदणीलमओ ॥ ५७ जोयणसहस्सगाढो चुलसीदिसहस्समेत्तउच्छेहो । सव्वस्सि चुलसीदीसहस्सरुंदो य समवहो ॥ ५८
१०००। ८४००० । ८४००० । मूलम्मि य उवरिम्म य तडवेदीओ विचित्तवणसंडा। वणवेदीओ तस्स य पुचोदिदवण्णणा होति ॥ ५९ चउसु दिसाभागेसुं चत्तारि दहा भवंति तग्गिरिणो । पत्तेक्कमेकजोयणलक्खपमाणा य चउरस्सा ॥ ६०
१००००० । जोयणसहस्सगाढा टंकुक्किएणा य जलयरविमुक्का । फुल्लंतकमलकुवलयकुमुदवणामोदसोहिल्ला ॥६१
१...।
नन्दीश्वरद्वीपकी अभ्यन्तर परिधिका प्रमाण अंकक्रमसे तीन, पांच, सात, दो, शून्य, दो, एक, छह, तीन, शून्य और एक, इन अंकोंसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन है ॥ ५५॥ १०३६१२०२७५३ ।
___ इसकी बाह्य परिधि दो हजार बहत्तर करोड़ तेतीस लाख चउवन हजार एक सौ नब्बै योजनमात्र है ॥ ५६ ॥ २०७२३३५४१९० ।
नन्दीश्वरद्वीपके बहुमध्यभागमें पूर्व दिशाकी ओर अंजनगिरि इस नामसे प्रसिद्ध निर्मल उत्तम इन्द्रनीलमणिमय श्रेष्ठ पर्वत है ॥ ५७ ॥
यह पर्वत एक हजार योजन गहरा, चौरासी हजार योजन ऊंचा और सब जगह चौरासी हजार योजनमात्र विस्तारसे सहित समवृत्त है ॥ ५८॥
__ अवगाह १००० । उत्सेध ८४००० । विस्तार ८४०००।
उसके मूल व उपरिम भागमें तटवेदियां व विचित्र वनखण्ड स्थित हैं। उसकी वन-वेदियोंका वर्णन पूर्वोक्त वेदियोंके ही समान है ॥ ५९॥
उस पर्वतके चारों ओर चार दिशाओंमें चौकोण चार द्रह हैं। इनमेंसे प्रत्येक एक लाख योजन विस्तारवाले एवं चतुष्कोण हैं ॥ ६० ॥ विस्तार १००००० यो.
फूले हुए कमल, कुवलय और कुमुदवनोंकी सुगन्धसे शोभित ये द्रह एक हजार योजन गहरे, टंकोत्कीर्ण एवं जलचर जीवोंसे रहित हैं ॥ ६१ ॥ गहराई १००० यो. ।
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१द पणसछत्त'.
२द ब अंककमो.
३द ब वरवेदीओ.
द व होदि.
TP. 68
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