Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-५. ७८]
पंचमो महाधियारो
[५३९
एक्कचउक्कटुंजणदाहिमुहरइयरगिरीण सिहरम्मि । चेट्टदि' वररयणमओ एकेक्वजिणिंदपासादो॥ ७० जं भद्दसालवणजिणपुराण उस्सेहपहुदि उवइ8 । तेरसजिणभवणाणं तं एदाणं पि वत्तवं ॥ ७१ जलगंधकुसुमतंदुलवरचरुफलदीवधूवपहुदीणं । अच्चंते थुणमाणा जिणिंदपडिमाणि देवाणं॥ ७२ जोइसियवागवेंतरभावणसरकप्पवासिदेवीओ। णच्चंति य गायति य जिणभवणेसं विचित्तभंगेहिं ॥१ भेरीमद्दलघंटापहदीणि विविहदिव्ववज्जाणिं । वायंते देववरा जिणवरभवणेसु भत्तीए ॥ ७१ एवं दक्षिणपच्छिमउत्तरभागेसु होति दिव्वदहा । णवरि विसेसो णामा पउमिणिसंडाण अण्णण्णा ॥७५ पुवादिसुं अरज्जा विरजासोका य वीदसोक* त्ति । दक्खिणअंजणसेले चत्तारो पउमिणीसंडा ॥ ७६ विजय त्ति वइजयंती जयंतिअपराजिदा य तुरिमाए। पच्छिमअंजणसेले' चत्तारो कमलिणीसंडा॥ ७७ रम्मारमणीयाओ सुप्पहणामा य सव्वदोभद्दा । उत्तरअंजणसेले पुवादिसु कमलिणीसंडा ॥ ७८
एक अंजनगिरि, चार दधिमुख और आठ रतिकर पर्वतोंके शिखरपर उत्तम रत्नमय एक एक जिनेन्द्रमन्दिर स्थित है ॥ ७० ॥
भद्रशालवनके जिनपुरोंकी जो उंचाई आदि बतलाई है, वही इन तेरह जिनभवनोंकी भी कहना चाहिये ॥ ७१ ॥
इन मन्दिरोंमें देव जल, गन्ध, पुष्प, तंदुल, उत्तम नैवेद्य, फल, दीप और धूपादिक द्रव्योंसे जिनेन्द्रप्रतिमाओंकी स्तुतिपूर्वक पूजा करते हैं ॥ ७२ ॥
ज्योतिषी, वानव्यन्तर, भवनवासी और कल्पवासी देवोंकी देवियां इन जिनभवनोंमें विचित्र रीतिसे नाचती और गाती हैं ॥ ७३ ॥
जिनेन्द्रभवनों में उत्तम देव भक्तिसे भेरी, मर्दल और घंटा आदि अनेक प्रकारके दिव्य बाजोंको बजाते हैं ॥ ७४ ॥
इस प्रकार पूर्वदिशाके समान ही दक्षिण, पश्चिम और उत्तर भागों में भी दिव्य द्रह हैं। विशेष इतना है कि इन दिशाओंमें स्थित कमलयुक्त वापियोंके नाम भिन्न भिन्न हैं ॥ ७५ ॥
दक्षिण अंजनगिरिकी पूर्वादिक दिशाओंमें अरजा, विरजा, अशोका और वीतशोका नामक चार वापिकायें हैं ॥ ७६॥
__ पश्चिम अंजनगिरिकी चारों दिशाओंमें विजया, वैजयन्ती, जयन्ती और चौथी अपराजिता, इस प्रकार ये चार वापिकायें हैं ॥ ७७ ॥
उत्तर अंजनगिरिकी पूर्वादिक दिशाओंमें रम्या, रमणीया, सुप्रभा और सर्वतोभद्रा नामक चार वापिकायें हैं ।। ७८ ॥
१द बचट्ठति. २द ब देवाणिं. ३द व देववरो. ४ द ब वीदसोको. ५ द ब सेला.
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