Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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५४० तिलोयपण्णत्ती
[५. ७९एकेके पासादा चउसट्ठिवणेसु अंजणगिरीणं । धुव्वंतधयवडाया हवंति वररयणकणयमया ॥ ७९ बासहि जोयणाणि उदओ इगितीस ताण वित्थारो। वित्थारसमो दीहो वेदियवरगोउरेहि परियरिओ ॥ ८० वणसंडणामजुत्ता' वेंतरदेवा वसंति एदेसुं । मणिमयपासादेसुं बहुविहपरिवारपरियरिया ॥ ८१ गंदीसरविदिसासु अंजणसेला भवंति चत्तारि । रइकरमाणसरिच्छा केई एवं परूवेंति ॥ ८२ परिसे वरिसे चउविहदेवा गंदीसरम्मि दीवम्मि । आसाढकत्तिएसुं फग्गुणमासे समायति ॥ ८३ एरावणमारूढो दिब्यविभूदीए भूसिदो रम्मो । णालियरपुण्णपाणी सोहम्मो एदि भत्तीए ॥ ८४ वरवारणमारूढो वररयणविभूसणेहिं सोहंतो । पूगफलगोच्छहत्थो ईसाणिंदो वि भत्तीए ॥ ८५ बरकेसरिमारूढो णवरविसारिच्छकुंडलाभरणो। चूदफलगोच्छहत्थी सणक्कुमारो वि भत्तिजुदो ॥ ८६
__ अंजनागरियोंके चौंसठ वनोंमें फहराती हुई ध्वजा-पताकाओंसे संयुक्त उत्तम रत्न एवं सुवर्णमय एक एक प्रासाद हैं ॥ ७९ ॥
इन प्रासादोंकी उंचाई बासठ योजन और विस्तार इकतीस योजनभात्र है । विस्तारके समान लंबाई भी इनकी इकास योजनप्रमाण ही है । ये सब प्रासाद उत्तम वेदिकाओं और गोपुरद्वारोंसे व्याप्त हैं ॥ ८० ॥
इन मणिमय प्रासादोंमें वनखण्डोंके नामोंसे संयुक्त व्यन्तर देव बहुत प्रकारके परिवारसे व्याप्त होकर रहते हैं ॥ ८१ ।।
नन्दीश्वरद्वीपकी विदिशाओंमें रतिकर पर्वतोंके सदृश परिमाणवाले चार अंजनशैल हैं, इस प्रकार भी कोई आचार्य निरूपण करते हैं ॥ ८२ ॥
___ चारों प्रकारके देव नन्दीश्वरद्वीपमें प्रत्येक वर्ष आषाढ़, कार्तिक और फाल्गुन मासमें आते हैं ॥ ८३ ॥
इस समय दिव्य विभूतिसे विभूषित रमणीय सौधर्म इन्द्र हाथमें नारियलको लिये हुए भक्तिसे ऐरावत हाथीपर चढ़कर यहां आता है ॥ ८४ ॥
उत्तम हाथीपर आरूढ़ और उत्कृष्ट रत्न-विभूषणोंसे सुशोभित ईशान इन्द्र भी हाथमें सुपाड़ी फलोंके गुच्छेको लिये हुए भक्तिसे यहां आता है.॥ ८५ ॥
नवीन सूर्यके सदृश कुण्डलोंसे विभूषित और हाथमें आम्रफलोंके गुच्छेको लिये हुए सनत्कुमार इन्द्र भी भक्तिसे युक्त होता हुआ उत्तम सिंहपर चढ़कर यहां आता है ।। ८६॥
१ द एक्केवकं. २ ब कणयमाला. ३ द ब 'जुत्तो. ४द व णाम. ५ द वरकेसर.
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