Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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तिलोयपण्णत्ती परिपक्कउच्छहत्थो कुमुदविमाणं विचित्तमारूढो । विविहालंकारधरो आगच्छेदि आरणिंदो वि ॥ ९६ भारूढो वरमोरं वलयंगदमउडहारसंजुत्तो । ससिधवलचमरहत्थो आगच्छदि अच्चुदाहिवई ॥ ९७ णाणाविवाहणयाणाणाफलकुसुमदामभरिदकराणाणाविभूदिसहिदा जोइसवणभवण एंति भत्तिजुदा ॥९८ भागच्छिय गंदीसरवरदीवजिणिंददिबभवणाई । बहुविहथुदिमुहलमुडा पदाहिणाई पकुव्वंति ॥ ९९ पुव्वाए कप्पवासी भवणसुरा दक्षिणाए वेंतरया । पच्छिमदिसाए तेसुं जोइसिया उत्तरदिसाए॥१.. णियणियविभूदिजोग्ग महिमं कुब्वंति थोत्तबहलमुहा । गंदीसरजिणमंदिरजत्तासुं विउलभत्तिजुदा ॥ १०१ प्रध्वण्हे अवरण्हे पुव्वणिसाए वि पच्छिमणिसाए । पहराणि दोणि दोणि वरंभत्तीए पसत्तमणा ॥ १०२ कमसो पदाहिणणं पुण्णिमयं जाव अट्ठमीदु तदो। देवा विविहं पूजा जिणिंदपडिमाण कव्वंति ॥ १०३ कुव्वते अभिसेयं महाविभूदीहिं ताण देविंदा । कंचणकलसगदेहिं विमलजलेहिं सुगंधेहिं ॥ १०४
पके हुए गन्नेको हाथमें धारण करनेवाला और विचित्र कुमुद विमानपर आरूढ़ हुआ आरणेन्द्र भी विविध प्रकारके अलंकारोंको धारण करके यहां आता है ॥ ९६ ॥
कटक, अंगद, मुकुट एवं हारसे संयुक्त और चन्द्रमाके समान धवल चवरको हाथमें लिये हुए अच्युतेन्द्र उत्तम मयूरपर चढ़कर यहां आता है ॥ ९७ ॥
___नाना प्रकारकी विभूतिसे सहित, अनेक फल व पुष्पमालाओंको हाथोंमें लिये हुए और अनेक प्रकारके वाहनोंपर आरूढ़ ज्योतिषी, व्यन्तर एवं भवनवासी देव भी भक्तिसे संयुक्त होकर यहां आते हैं ॥९८॥
इस प्रकार ये देव नन्दीश्वरवरद्वीपके दिव्य जिनेन्द्रभवनोंमें आकर नाना प्रकारकी स्तुतियोंसे वाचालमुख होते हुए प्रदक्षिणायें करते हैं ।। ९९ ॥
नन्दीश्वरद्वीपस्थ जिनमन्दिरोंकी यात्रामें बहुत भक्तिसे युक्त कल्पवासी देव पूर्वदिशामें, भवनवासी दक्षिणमें, व्यन्तर पश्चिमदिशामें और ज्योतिषी देव उत्तरदिशामें मुखसे बहुत स्तोत्रोंका उच्चारण करते हुए अपनी अपनी विभूतिके योग्य महिमाको करते हैं ॥ १००-१०१॥
ये देव आसक्तचित्त होकर अष्टमीसे लेकर पूर्णिमा तक पूर्वाह्न, अपराल, पूर्वरात्रि और पश्चिमरात्रिमें दो दो प्रहर तक उत्तम भक्तिपूर्वक प्रदक्षिणक्रमसे जिनेन्द्रप्रतिमाओंकी विविध प्रकारसे पूजा करते हैं ॥ १०२-१०३ ।।
देवेन्द्र महान् विभूतिके साथ इन प्रतिमाओंका सुवर्ण-कलशोंमें भरे हुए सुगन्धित निर्मल जलसे अभिषेक करते हैं ॥ १०४ ॥
१द परिपिक. २द ब आगच्छिय. ३ द ब संहतो. ४ द ब दव्व. ५द वेतरिया. ६९ ब मरमत्तीए. ७द ब यसत्त. ८द ब पुण्णमयं जाव अटमीदु.
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