Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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( ८8 )
त्रिलोकप्रज्ञप्तिकी प्रस्तावना
आर्यकुल्या आदि, तथा शुक्तिमान् पर्वतसे ऋषिकुल्या और कुमारा ( कुमारी ) आदि नदियां निकली हैं। इन नदियोंके किनारोंपर मध्यदेशको आदि लेकर कुरु और पाश्चाल, पूर्व देशको आदि लेकर कामरूप निवासी, दक्षिणको आदि लेकर पुण्ड्र, कलिङ्ग और मगध, सौराष्ट्र शूर, आभीर व अर्बुद ये पश्चिमांत देश, पारियात्रनिवासी कारूष और मालव, कोशलनिवासी सौवीर, सेन्धन, हूण और साल्व, तथा पारसीकोंको आदि लेकर माद, आराम और अम्बष्ठ देशवासी रहते हैं ।
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कृतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग, ये चार युग इसी भारत वर्षमें ही हैं; किम्पुरुषादिक शेष वर्षोंमें वे नहीं हैं। उन शेष आठ क्षेत्रों में शोक, परिश्रम, उद्वेग और क्षुधामय आदिक नहीं हैं । वहाँके प्रजाजन स्वस्थ, आतङ्कसे रहित और सब प्रकारके दुःखोंसे वियुक्त होकर दश- बारह हजार वर्षों तक जीवित रहते हैं । वे जरा एवं मृत्युके भयसे रहित होकर सदा सुखी T रहते हैं। वहां धर्म-अधर्म तथा उत्तम, मध्यम एवं अधम, ये भेद भी नहीं हैं । यहां स्वर्गमोक्षकी प्राप्तिके कारणभूत तपश्चरणादि रूप क्रियाओंका अभाव होनेसे वे क्षेत्र कर्मभूमि न होकर केवल भोगभूमियां ही हैं । इसी कारण जम्बूद्वीपस्थ उन नौ वर्षों में एक मात्र भारत वर्ष ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है । इसमें जन्म लेनेके लिये देवगण भी उत्कण्ठित रहते हैं ।
स्वायम्भुव मनुके पुत्र प्रियव्रत के आशीघ्र, अग्निवाहु, वपुष्मान् द्युतिमान्, मेधा, मेधामेधा, अग्निवाहु और
तिथि, भव्य, सवन, पुत्र और ज्योतिषमान्, ये दश पुत्र हुए । इनमें पुत्र इन तीन पुत्रोंने जातिस्मरण हो जानेसे योगपरायण होकर राज्य की अभिलाषा नहीं की । उनके पिता प्रियव्रतने शेष सात पुत्र से आग्नीध्र को जम्बू द्वीप, मेधातिथिको प्लक्ष द्वीप, पुष्मान्को शाल्मल द्वीप, ज्योतिषमान्को कुरा द्वीप, द्युतिमान्को क्रौंच द्वीप, भव्यको शाक द्वीप और सवनको पुष्कर द्वीपका अधिपति बनाया ।
इनमेंसे आग्नीध्रके नाभि, किम्पुरुष, हरिवर्ष, इलाव्रत, रम्य, हिरण्यवान्, कुरु, मद्रास और केतुमाल, ये नौ पुत्र हुए जो क्रमश: हिम वर्ष ( भारत वर्ष ) आदि उपर्युक्त नौ वर्षोंके अधिपति थे । इनमें हिम वर्षके अधिपति महाराज नामिके ऋषभ नामक पुत्र हुआ | महात्मा ऋषभके भरतादिक सौ पुत्र हुए । इनने कुछ काल तक धर्मपूर्वक राज्यकार्य करके पश्चात् अपने ज्येष्ठ पुत्र भरतको राज्याभिषिक्त किया और स्वयं तपश्चरण करने के लिये मुनि पुलहके आश्रम में जा पहुंचे । वां उन्होंने घोर तप किया । इससे वे अत्यन्त कृश हो गये, उनकी धमनियां
• जैन प्रन्थों में भी भोगभूमियों का प्रायः ऐसा ही वर्णन किया गया है।
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