Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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त्रिलोकप्रज्ञप्तिकी अन्य प्रयोसे तुलना . () ऊंचे और इतने ही विस्तृत भी हैं। इन पर्वतोंके द्वारा जो जम्बूद्वीपके सात माग किये गये। उनके नाम दक्षिणकी ओरसे ये हैं- भारत वर्ष, किम्पुरुष, हरि वर्ष, इलावृत, रम्यक, हिरण्मय
और उत्तरकुरु । इनमें इलावृतको छोड़ शेष छहका विस्तार दक्षिण-उत्तरमें नौ नौ हजार योजन है। इलावृत वर्ष मेरुके पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर, इन चारों दिशाओंमें नौ-नौ हजार योजन विस्तृत है। सब पर्वतों व वर्षों के विस्तारको मिलानेपर वह एक लाख यो. प्रमाण होता है, जितना कि समस्त जम्बूद्वीपका विस्तार है । यथा- भारत वर्ष ९००० + हिमवान् २००० + किम्पुरुष ९००० + हेमकूट २००० + हरि वर्ष ९००० + निषध २००० + इलावृत १८००० (दक्षिण-उत्तर नौ-नौ हजार ) मेरु १६०००+ नील २०००+ रम्यक ९.००+ श्वेत २००० + हिरण्मय ९००० + शृङ्गी २००० +उत्तरकुरु ९००० = १००००० यो ।
मेरु पर्वतके दोनों ओर पूर्व-पश्चिममें इलावृत वर्षकी मर्यादाभूत मास्यवान् और गन्धमादन पर्वत हैं जो नील व निषध पर्वत तक फैले हुए हैं। इनके कारण दोनों और जो दो विभाग हुए हैं उनका नाम भद्राश्व व केतुमाल है। उपर्युक्त सात वर्षों में इन दो वर्षोंको और मिला देनेपर जम्बूद्वीपस्थ सब वर्षों की संख्या नौ हो जाती है।
मेरुके चारों ओर पूर्वादिक दिशाओंमें क्रमशः मन्दर, गन्धमादन, विपुल और पार्थ ये चार पर्वत हैं। इनके ऊपर क्रमशः ग्यारह सौ योजन ऊंचे कदम्ब, जम्बू , पीपल और घट, ये चार वृक्ष हैं। इनमें से जम्बू वृक्षके नामसे इस द्वीपका भी नाम जम्बू द्वीप प्रसिद्ध हुआ।
उपयुक्त नौ वर्षोंमें भारत वर्ष कर्मभूमि है, क्योंकि, यहांसे स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है, तथा यहांपर मनुष्य पाप कर्ममें रत होकर तियेच व नारक पर्याय भी प्राप्त करता है। यहां भरत क्षेत्रमें महेन्द्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान् , ऋक्ष, विन्ध्य और पारियात्र, ये सात कुलपर्वत हैं। इनमें हिमवान्से शतदु और चन्द्रभागा आदि, पारियात्रसे वेद और स्मृति आदि, विध्यसे नर्मदा और सुरसा आदि; ऋक्षसे तापी, पयोष्णी और निर्विन्ध्या आदि; सह्यसे गोदावरी, भीमरथी और कृष्णवेणी आदि; मलयसे कृतमाला और ताम्रपर्णी आदि, महेन्द्रसे त्रिसामा और
..इमकी इस लम्बाईका प्रमाण गणितप्रक्रियामें नहीं बैठता । २ जैन ग्रन्थों में उनके नाम ये हैं- भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत । यहाँ विदेह क्षेत्रके भीतर मेरुसे उत्तरमें उत्तरकुरुकी स्थिति है। ३ जैन ग्रन्थानुसार माल्यवान् और गन्धमादन ये दो गजदन्ताकार वक्षार पर्वत क्रमशः मेरुकी नैऋत्य व वायव्य दिशामें स्थित हैं। ४ जैन ग्रन्थानुसार मेरुकी ईशान दिशामें जम्बू वृक्ष और नैऋाल दिशामें शामील वृक्ष स्थित हैं। ५ जैनग्रन्थानुसार मरत, ऐरावत, और विदेह क्षेत्र कर्मभूमिया, तथा शेष भोगभूमियां हैं।
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