Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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त्रिलोकप्रज्ञप्तिकी अन्य ग्रन्थोंसे तुलना
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(२) ति. प. (८, ३३२-३५०) में सौधर्मादिक इन्द्रोंका अवस्थान पृषक पृथक् बतला देनेके पश्चात् इसी अर्थको समुदित रूपमें बतलाने के लिये जो 'छज्जुगलसेसएसं.... इत्यादि गाथा ( ३५१ ) दी गई है वह यहां त्रिलोकसारमें (१८३) मी थोडेसे पाठभेदके साथ पायी जाती है।
(३) ति. प. (८-४०१) में स्तम्भोंके ऊपर और नीचे २५-२५ कोश छोड़कर जो करण्डकोका अवस्थान बतलाया है, यहां (५२१) उसे क्रमशः २५ और २३ कोश छोड़कर बतलाया है।
(४) तिलोयपण्णत्ति (म. ८, १२५-२६ ) में जो विजयादिकके अवस्थानमें दिशाभेद बतलाया है उसमें यहाँ (५२७) द्वितीय मत स्वीकार किया गया प्रतीत होता है।
(५) ति. प. (८-५११ ) में आचार्यान्तरके मतसे सर्वार्थसिद्धिमें पत्यके असंख्यात भागसे हीन तेतीस सागरोपम प्रमाण जघन्य आयु भी बतलाई है। परन्तु यहां (५३२) जघन्य आयुका कुछ स्पष्ट उल्लेख नहीं पाया जाता।
(६)ति. प. ( ८,५४४-४६) में कल्पवासी देवोंका उत्कृष्ट विरहकाल बतला कर फिर भी मतान्तरसे अन्य प्रकार बतलाते हुए जो गा. ५४९ दी गई है वह गाथा यहाँ (५२९) भी पायी जाती है । यहां इसी मत को अपनाया गया है।
(७) ति. प. ( ८,५२५-२६) में पहले बारह कल्पोंकी विवक्षासे देवियोंकी आयुका प्रमाण बतला कर फिर गा. ५२७-२९ में, जो सोलह कल्पोंको स्वीकार करते हैं, उनके उपदेशानुसार भी उक्त आयुका प्रमाण बतलाया है । तत्पश्चात् गा. ५३० में ' लोकायनी' के अनुसार तथा गा. ५३१-३२ में मूलाचारके अनुसार भी उन देवियोंकी
आयुका प्रमाण बतलाया है जो पल्यों में निम्न प्रकार है| सौ. | ई. स. मा. | प्र. | ब्रह्मो. लां. का. शु. म. श. स. आ. प्रा. आरण अ.
| ५ | ७/९/११ | १३ | १५ | १७ | १९ /२१/ २३ /२५/२७/३४/४१ | १८५५ | ५ |७|९११ | १३ | १५ | १७ | १९/२१/ २३ |२५|२७|२९| ३१ | ३३ |३५ ५ ७ - २५३५- ४०- ४५ ५० ५५
यहां त्रिलोकसारमें (५४२ ) द्वितीय मतको स्वीकार कर उसके अनुसार देवियोंकी आयुका प्रमाण बतलाया गया है ।
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