Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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त्रिलोकप्रज्ञप्तिकी अन्य ग्रन्थोंसे तुलना
(५५) किया है कि तृतीय कालमें पल्यका आठवां भाग शेष रहनेपर चौदह कुलकरोंकी उत्पत्ति होती है । उनमें प्रथम कुलकरकी आयु ,१. पल्य, द्वितीयकी . पल्य, इस प्रकार आगे आगेके कुलकरकी आयु पूर्व पूर्वकी अपेक्षा दशवें भाग होती गई है । अब यदि हरिवंशपुराणकर्ताके अनुसार कुलकर पुरुषोंके बीच अन्तराल न स्वीकार किया जाय तो उन सबकी आयुके प्रमाणको मिलानेपर वह कुछ कम पल्यका नौवा भाग (३) होता है । इस प्रकार पल्यका आठवां भाग शेष रहने पर जे। उन्होंने कुलकर पुरुषोंकी उत्पत्ति स्वीकार की है, वह उनके ही मतके विरुद्ध पड़ती है । किन्तु तिलोयपण्णत्तिकारके अनुसार उक्त आयुप्रमाण
L१०००००००००००००
११११११११
= कुछ कम । पत्य ] में सबों के अन्तरकाल[ ४.११.१.१..१.१.११.११. कुछ कम पस्य को मिला देनेपर वह कुछ कम पल्यका आठवां भाग [१ + १ = 8-] होता है,
जैसा कि उन्होंने स्वीकार भी किया है ( देखिये गा. ४-४२१)।
हरिवंशपुराणके कतीने प्रतिश्रति आदि उक्त कुलककी आयु, उत्सेध और वर्णादिका निर्देश करके भी उनकी पत्नियोंका कोई उल्लेख नहीं किया । परन्तु तिलोयपण्णत्तिकारने प्रत्येक कुलकरकी पत्नीका नामोल्लेख करके प्रसेनजित् नामक तेरहवें कुलकर तक उनके लिये 'देवी' या ' महादेवी' पदका तथा अन्तिम कुलकर नाभिरायकी पत्नीके लिये 'वधू' पदका प्रयोग किया है । इससे ध्वनित होता है कि उनके मतानुसार विवाहविधि प्रसेनजित् कुलकरके समयसे चालू हुई है। हरिवंशपुराणके अनुसार यह विधि मरुदेव नामक बारहवें कुलकरके समयसे प्रारम्भ हुई है, क्योंकि, वहां मरुदेवके द्वारा अपने पुत्र प्रसेनजित्का प्रधानकुलवाली कन्याके साथ विवाह करानेका स्पष्ट उल्लेख है।
मिलान कीजिये-- एक्करस-वण्ण-गंधं दो फासा सद्दकारणमसई । खंदतरिदं दव्वं तं परमाणु भणंति बुधा ।। अंतादि-मज्झहीणं अपदेस इंदिएहि ण हु गेझं । जं दव्वं अविभत्तं तं परमाणु कहंति जिणा ॥ वण्ण-रस-गंध फासे पूरण-गलणाई सव्वकालम्हि । खंदं पि व कुणमाणा परमाणू पुग्गला तम्हा ॥
ति. प. १ गा. ९७, ९८, १००.
१ अथ कालद्वयेऽतीते क्रमेण सुखकारणे । पल्याष्टभागशेषे च तृतीये समवस्थिते ॥ क्रमेण क्षीयमाणेषु कल्प
वृक्षेषु भूरिषु । क्षेत्रे कुलकरोत्पत्ति शृणु श्रेणिक साम्प्रतम् ॥ ह. पु. ७, १२२-२३. २ ह. पु. ७,१६६-६७.
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