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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी
पर्वत के कारण भारतवर्ष अथवा भरतक्षेत्र के छ खण्ड वन जाते हैं। यह गंगा तथा सिन्धु नदियां इतनी बड़ी हैं कि इनमें से प्रत्येक में चौदह चौदह सहस्र सहायक नदियां आकर मिलती हैं। भारतवर्ष के दो खण्डों में पांच म्लेच्छ खण्ड तथा एक आर्य खण्ड है। जो व्यक्ति असि (तलवार चलाना), मसि (लेखन कार्य), कृषि, सेवा, शिल्प तथा वाणिज्य इन छ कर्मों द्वारा अपनी आजीविका करे उसे आर्य तथा केवल हिंसा द्वारा अपनी आजीविका चलाने वाले को म्लेच्छ कहते हैं।
जम्बूद्वीप का व्यास एक लाख योजन का है। यहां एक • योजन दो सहस्र कोस का माना गया है। भारतवर्ष की उत्तर से
दक्षिण तक चौड़ाई जम्बूद्वीप का एक सौ नव्वेवां भाग होने के कारण ५२६ ६ योजन अर्थात् १०, ५२, ६२१ ११ कोस अथवा २,०१,०५,२४३,३ मील है। यह भारतवर्ष की उत्तर से दक्षिण तक चौड़ाई है। फिर पूर्व से पश्चिम तक की लम्बाई को इससे गुणा देने से इसका सम्पूर्ण क्षेत्रफल अाजकल की समस्त पृथ्वी के क्षेत्रफल से किसी प्रकार भी कम नहीं होगा। जैन शास्त्रों में लिखा है कि भरत चक्रवर्ती, सगर चक्रवर्ती तथा उनके उत्तरवर्ती अन्य दस चक्रवर्तियों ने भारतवर्ष के इन छहों खण्डों पर विजय प्राप्त की थी। इस प्रकार उस प्राचीन काल में आजकल का समस्त भूमण्डल भारतवर्ष की सीमा में था। आज भी अमरिका के मूल निवासियों का रहन सहन, पहिनावा आदि सब कुछ प्राचीन भारतीयों के समान है। फिन्तु समय बदला और भारतवर्ष में बारह चक्रवर्तियों के बाद फिर कोई ऐसा प्रबल शासक नहीं हुआ जो उन सभी ज्ञात