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* नीनिवाम्यामन *
- स्त्री प्राति पंचेन्द्रियोंके विषय विपफलक ममान नन्कालमें पुरुयोंको मां मातम पड़ने है परन्तु अन्न में विपतिरूपी फलोंको देते हैं: इलिये सजनाको इनमे क्यों श्रानान, दानी चाहिये ? अथान मी होनी चाहिये ॥५॥
अनन्तवीर्यको धारण करनेवाला यह मनुष्य अत्यन्न कामसवनम नमक हो जाताहै ॥६॥
अत्रक्क यह कामरूपी अग्नि मनुष्य के चित्तरूपी इंधनमें प्रदीप होता है तबतक उममें स्वाध्याय, अमध्यान और धार्मिक क्रियाएँ किम प्रकार उत्पन्न हो सकती है ? नहीं हो सकी है।
इसलिये कामतत्परताको छोड़कर न्यायमान भागोंको भोजनके ममान शारीरिक दाहकी शान्तिक हेतु और खोटे ध्यानको नए करनेक लिये सेवन करना चाहिये ।।८।। ... परस्त्रीक यहीं भान जाना, कामवनक निश्चित अङ्गीको छोड़कर दमा अङ्गामे कीड़ा करना, इसरोका विवाह करना, काममेबनमें नीनालमा रखना और विटल्य य पाँच ब्रह्मचर्यको नष्ट करने हैं ।।६।।
कामरूपी अग्निसे व्याप्त और परस्त्रीमें अनग्न नियोको इमलोकर्म तत्कालीन और परलोकभी भयानक विपत्तियाँ भोगनी पड़ती है ॥१०॥
. प्रापर्य के प्रभावसे श्राश्चर्यजनक श्वर्य, उदारना, बारला, धैर्य, मौन्दय और विशिमशान आदि गुप प्राप्त होते हैं ॥११॥
॥ इति ब्रह्ममयाणवतनिरूपणम् ।। अब परिमापरिमाणाणुमतका फशन किया जाना है :--- 1. बाब तथा श्राभ्यन्सर वस्तुओंमें "यह मेरी है। इस प्रकारकी मृगछा करना परिघट है उसमें मनुष्यको अपनी चित्तवृत्ति संकुचित-सीमित करनी चाहिय ॥६॥
क्षेत्र, धान्य, धन, गृह, कुप्य (तांबा आदि धातु ), शण्या, आमन, विपद, मनुष्पट ( पशु ) और भार, ये दराप्रकारके बाह्य परिमह हैं ।।२।। - मिथ्यात्व, स्त्रीवेद, Kषेद, नपु'सकवेद, हाम्थ, रति, अनि, शोक, भय, जगुप्मा, क्रोध, मान, माया और खोम बह १५ प्रकारका अन्तरङ्ग परिग्रह है ३॥
___ जो लोग धनके लिये अपनी बुद्धिको प्रेरित कान हैं उन मनोरथ निष्फल होने हैं: क्योंकि निर्थक कार्याने प्रवृत्त हुई युद्धि फलार्थी पुरषोंकी कामनाका पूर्ण करनेवाली नहीं होती ।।५।। _जबकि माथ उत्पन्न हुआ यह शरीर भी नित्य रहनवाला नहीं है तत्र महापुरुषोंको धन, बच्च और नियोंमें नित्य रहनेकी श्रद्धा क्यों करनी चाहिय ? अर्थान नहीं करनी चाहिये ।।४।।
जो मनुष्य दानपुण्यानिधर्मके लिये और न्यायपास भोगों भोगना लिये धन नहीं कमाना यह नाग होकरके भी दरिद्र है, मनुष्य होकरके भी अधमकोटिका मनुष्य है।
जो लोग प्राप्त धनमें अभिमान नहीं करने तथा धनकी प्रामिमें चान्छा नहीं कान व दोनों लोकोम मामी थामी होते हैं
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भनक पृ. ३१ में ।