Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
विहत्तीए णिक्खेवो ओदइएण सह अविहत्ती; ओदइयभावेण भेदाभावादो । * ओदइओ उवसमिएण भावेण विहत्ती।
२५. कुदो उदयजणिदेण भावेण सह उवसमजणिदभावस्स समाणत्तविरोहादो। * तदुभएण अवत्तव्वं ।
२६. ओदइओ भावो ओदइय-उवसमिय-भावेहि सण्णिकासिजमाणो अवत्तव्वो होदि, विहत्ति-अविहत्तिसद्दाणमक्कमेण भणणोवायाभावादो। .
* एवं सेसेसु वि।
२७. जहा ओदइयस्स उवसमिएण भावेण सण्णिकासिञ्जमाणस्स बे भंगा परूविदा तहा सेसेसु खइय-क्खओवसमिय-पारिणामियभावेसु वि सण्णिकासिज्जमाणस्स बेबे भंगा परूवेयव्वा । तं जहा, ओदइयो खओवसमियस्स विहत्ती तदुभएण अवत्तव्यो।
ओदइओ खइयस्स विहत्ती तदुभएण अवत्तव्वं । ओदइओ पारिणामियस्स विहत्ती तदुभएण अवत्तव्यं ।
* एवं सव्वत्थ । उन दोनों भावोंमें औदायिकरूपसे कोई भेद नहीं पाया जाता है।
* औदयिकभाव औपशमिकभावके साथ विभक्ति है। ६ २५. शंका-औदयिक भाव औपशमिक भावके साथ विभक्ति क्यों है ?
समाधान-क्योंकि उदयजन्य भावके साथ उपशमजन्य भावकी समानता मानने में विरोध आता है, इसलिये औदयिकभाव औपशमिक भावके साथ विभक्ति है ?
* औदयिक और औपशमिक इन दोनोंकी एक साथ विवक्षा करनेसे औदयिक भाव अवक्तव्य है।
२६. औदयिक और औपशमिक भावोंके साथ सम्बन्धको प्राप्त हुआ औदयिक भाव अवक्तव्य है, क्योंकि, विभक्ति और अविभक्ति इन दोनोंके एक साथ कथन करनेका कोई उपाय नहीं पाया जाता है।
* इसी प्रकार शेष भावोंमें भी जानना चाहिये ।
६२७. जिसप्रकार औपशमिक भावके सम्बन्धसे औदयिक भावके दो भंग कहे हैं उसीप्रकार क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिकभावोंके सम्बन्धसे भी औदयिक भावके दो दो भंग कहना चाहिये। वे इसप्रकार हैं-औदयिकभाव क्षायोपशामिक भावके साथ विभक्ति है तथा औदायिक और क्षायोपशमिक इन दोनोंकी युगपद् विवक्षा होनेसे अवक्तव्य है। औदयिक भाव क्षायिक भावके साथ विभक्ति है और औदयिक तथा क्षायिक इन दोनोंकी युगपत् विवक्षाकी अपेक्षा अवक्तव्य है। औदयिक पारिणामिक भावके साथ विभक्ति है और औदयिक तथा पारिणामिक इन दोनों भावोंकी युगपत् विवक्षाकी अपेक्षा अवक्तव्य है।
* इसीप्रकार सर्वत्र जानना।
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