Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
विहत्तीए णिक्खेवो जलोगमेत्तसंखाए वट्टमाणमदि-सुदणाणाणमणुवलंभादो ।
* एवं तंस-चउरंस-आयदपरिमंडलाणं । ___ १६. जहा वट्टसंठाणस्स असंखेजलोगमेत्तवियप्पा परूविदा, तहा तंस-चउरंसआयदपरिमण्डलाणं पि वियप्पा असंखेजा लोगमेत्ता त्ति वत्तव्वं ।
* सरिसवर्ट सरिसवदृस्स अविहत्ती।
६२०. 'सरिसवहस्स' इत्ति उत्ते समाणवट्टस्सेत्ति भणिद होदि । एसा छट्टीविहत्ती तइयाए अत्थे दव्या। तेण सरिसवट्ट सरिसवट्टेण सह अविहत्ती अभिण्णमिदि उत्तं होदि । सरिसवटमसरिसवट्टेण सह विहत्ती तदुभएण अवत्तव्वं ।
* एवं सव्वत्थ ।
२१. जहा वदृस्स तिण्णि भंगा एकस्स परूविदा तहा सेसअसंखेजलोगमेत्तवहसंठाणाणं पुध पुध तिविहा परूवणा कायव्वा । सेसतंस-चउरंस-आयदपरिमंडलसंठाणाणमसंखेजलोगमेत्ताणमेवं चेव परूवणा कायव्वा । एदं कत्तो उपलब्भदे ? 'एवं युक्तिसे नहीं, क्योंकि असंख्यातलोक प्रमाण संख्यामें मतिज्ञान और श्रुतज्ञानकी प्रवृत्ति नहीं पाई जाती है।
* इसी प्रकार त्रिकोण, चतुष्कोण और आयतपरिमण्डलके विषयमें भी जानना चाहिये।
१६. जिस प्रकार गोल संस्थानके असंख्यात लोकप्रमाण विकल्प कहे हैं उसी प्रकार त्रिकोण, चतुष्कोण और आयतपरिमण्डल आकारोंके भी विकल्प असंख्यात लोक प्रमाण होते हैं ऐसा कथन करना चाहिये ।
* सदृश गोल संस्थान दूसरे सदृश गोल संस्थानके साथ अविभक्ति है।
२०. सूत्र में आए हुए 'सरिस वट्टस्स' इस पदका अर्थ समान गोलाई होता है। 'सरिसवदृस्स' पदमें जो षष्ठी विभक्ति आई है वह तृतीया विभक्तिके अर्थमें जानना चाहिये । इसलिये यह अर्थ हुआ कि समान गोल आकार दूसरे समान गोल आकारके साथ अविभक्ति अर्थात् अभिन्न है। तथा समान गोल आकार असमान गोल आकार के साथ विभक्ति है। तथा वह समान गोल आकार दूसरे समान और असमान गोल आकारों की एक साथ विवक्षा करनेकी अपेक्षा अवक्तव्य है। ___* इसी प्रकार सर्वत्र कथन करना चाहिये ।
२१. जिस प्रकार एक गोल आकारके तीन भंग कहे हैं उसी प्रकार शेष असंख्यात लोक प्रमाण गोल आकारोंका अलग अलग तीन भेदरूपसे कथन करना चाहिये । तथा इनसे अतिरिक्त जो असंख्यात लोकप्रमाण त्रिकोण चतुष्कोण और आयत परिमण्डल आकार हैं उनका भी इसी प्रकार कथन करना चाहिये।
शंका-'शेष असंख्यात लोकप्रमाण त्रिकोण, चतुष्कोण और आयत परिमण्डल संस्थानोंके
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