Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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( ३३ )
पाहीं
करे
गर्भ के प्रारम्भ से लेकर जन्म तक बालक को जो-जो कष्ट भोगने पड़ते हैं। वे क्या उस बालक की कृति के परिणाम हैं या उसके माता-पिता की कृति के ? उन्हें बालक की जन्म की कृषि उसने गर्भावस्था में तो अच्छा-बुरा कुछ भी काम नहीं किया है। यदि मातापिता की कृति का परिणाम कहें तो भी असंगत जान पड़ता है, क्योंकि मालापिता अच्छा या बुरा कुछ भी करें, उसका परिणाम बालक को बिना कारण क्यों भोगना पड़े ? बालक जो कुछ सुख-दुःख भोगता है, वह यों ही बिना कारण भोगता है, यह मानना तो अज्ञान की पराकाष्ठा है, क्योंकि बिना कारण किसी कार्य का होता असंभव है। यदि यह कहा जाये कि माता-पिता के आहार-विहार का, आचार-विचार का और शारीरिक-मानसिक अवस्थाओं का असर बालक पर गर्भावस्था से ही पड़ना शुरू होता है तो पुनः यह प्रश्न होता है कि बालक को ऐसे माता-पिता का संयोग क्यों हुआ ? और इसका क्या समाधान है कि कभी-कभी बालक की योग्यता माता-पिता से बिलकुल ही जुदा प्रकार की होती है। ऐसे अनेक उदाहरण देखे जाते हैं कि माता-पिता बिलकुल अपढ़ होते हैं और बालक पूरा शिक्षित वन जाता है। विशेष क्या, यहाँ तक देखा जाता है कि किन्हीं - किन्हीं माता-पिताओं की रुचि जिस बात पर बिलकुल ही नहीं होती, उसमें बालक feaहस्त हो जाता है। इसका कारण केवल आस-पास की परिस्थिति ही नहीं मानी जा सकती है, क्योंकि समान परिस्थिति और बराबर देखभाल होते हुए भी अनेक विद्यार्थियों में विचार और व्यवहार की मित्रता देखी जाती है । यदि कहा जाये कि यह परिणाम बालक के अद्भुत ज्ञान- तन्तुओं का है तो इस पर यह शंका होती है कि बालक की देह माता-पिता के शुकशोणित से बनी होती हैं, फिर उनमें अविद्यमान ऐसे ज्ञान चन्तु बालक के मस्तिष्क में आये कहाँ से ? कहीं कहीं माता-पिता की-सी ज्ञानशक्ति बालक में देखी जातो हैं सही, पर इसमें भी प्रश्न है कि ऐसा सुयोग क्यों मिला ? किसी-किसी जगह यह भी देखा जाता है कि माता-पिता की योग्यता बहुत बढ़ी चढ़ी होती है और उनके सी प्रयत्न करने पर भी लड़का गँवार ही रह जाता है ।
यह सब तो विदित ही है कि एक साथ युगलरूप से जन्मे हुए दो बालक भी समान नहीं होते। माता-पिता की देखभाल बराबर होने पर भी एक साधारण