Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 252
________________ १७२ नरकायु बन्ध के कारण चउहि ठाणेहिं जीवा रतियत्ताए कम्मं परेति, तं जहा - महारम्भताते. महापरिग्गह्याते पंचिदियवणं कुणिमाहारेणं । - स्थानांग स्थान है, उ० ४ ० ० ३०१३ कर्मfore अर्थ - जीव चार प्रकार से नरकायु का बन्ध करते हैं - बहुत आरम्भ करने में बहुत परिग्रह करने से, पंचेन्द्रिय जीव के वध से और (मृतक ) मांस का आहार करने से । तत्त्वार्थसूत्र का पाठ बारंभपरिग्रहत्वं नारकस्यायुषः । १९ तिर्यवआयु के बन्ध के कारण वउहि अणंहि जोवा तिरिक्खजोणियत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहामाइल्लताते, णियडिल्लता ते अलियवयणेणं, कूडलकूडमाणेणं । । 1 स्थानाए स्थान ४,०४, सू ० ३७३ — अर्थ - चार प्रकार से जीव तियंच आयु का बन्ध करते हैं - छलकपट से छल को छल के द्वारा छिपाने से असत्य भाषण में और कम तौलने व नापने से । 7 तत्त्वार्यसूत्र का पाठ माया तैर्यग्योनस्य | मनुष्यायु के बन्ध के कारण . चह ठाणेहि जीवा मनुस्सत्ताते कम्मं पगरेति तं जहा - पगतिभता, पगतिविणीयाए साक्कोसयाते अमच्छरिताते । स्थानांग स्थान ४, ७०४, सू० ३७३ - अ० ६, सू० १६

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