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नरकायु बन्ध के कारण
चउहि ठाणेहिं जीवा रतियत्ताए कम्मं परेति, तं जहा - महारम्भताते. महापरिग्गह्याते पंचिदियवणं कुणिमाहारेणं ।
- स्थानांग स्थान है, उ० ४ ० ० ३०१३
कर्मfore
अर्थ - जीव चार प्रकार से नरकायु का बन्ध करते हैं - बहुत आरम्भ करने में बहुत परिग्रह करने से, पंचेन्द्रिय जीव के वध से और (मृतक ) मांस का आहार करने से । तत्त्वार्थसूत्र का पाठ
बारंभपरिग्रहत्वं नारकस्यायुषः ।
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तिर्यवआयु के बन्ध के कारण
वउहि अणंहि जोवा तिरिक्खजोणियत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहामाइल्लताते, णियडिल्लता ते अलियवयणेणं, कूडलकूडमाणेणं ।
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स्थानाए स्थान ४,०४, सू ० ३७३
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अर्थ - चार प्रकार से जीव तियंच आयु का बन्ध करते हैं - छलकपट से छल को छल के द्वारा छिपाने से असत्य भाषण में और कम तौलने व नापने से ।
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तत्त्वार्यसूत्र का पाठ
माया तैर्यग्योनस्य |
मनुष्यायु के बन्ध के कारण
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चह ठाणेहि जीवा मनुस्सत्ताते कम्मं पगरेति तं जहा - पगतिभता, पगतिविणीयाए साक्कोसयाते अमच्छरिताते ।
स्थानांग स्थान ४, ७०४, सू० ३७३
- अ० ६, सू० १६