Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 265
________________ क्रम ' प्रकृतिनाम अनादेय नामकर्म २. अस्थिर नामकर्म ३. अशुभ नामकर्म ४. आदेय नामकर्म श्वेताम्बर जिसके उदय से जीव के वच नादि सर्वमान्य न हों, अर्थात् हितकारी वचनों को भी लोग प्रमाण रूप न मानें और अनादर करें | जिस कर्म के उदय से सिर हड्डी, दाँत, जीभ, कान आदि अवयवों में अस्थिरता आती है. चंचल रह जिस कर्म के उदय से नाभि से नीचे के अवयव पैर आदि अशुभ हों। जिसके उदय से जीव के बचनादि सर्वमान्य हों, लोग प्रमाण - भूत समझकर मानते हों और सत्कार करते हों । दिगम्बर जिसके उदय से शरीर में भा न हो। जिसके उदय से शरीर के धातुउपधातु स्थिर न रहें और थोड़ासा भी कष्ट न सहा जा सके : जिस कर्म के उदय से शरीर अवयत्र सुन्दर न हों । जिसके उदय से शरीर प्रभा युक्त हो । प्रथम कर्मग्रन्थ ጴፌን

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