Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 267
________________ १०. पराघात नामकर्म ११. प्रचला १२. प्रचलाप्रचला १३. यशःकीति नामकर्म १४. शुभ नामकर्म जिसके उदय से दूसरे बल-वानों के द्वारा भी अजेय हो । जिसके उदय मे खड़े-खड़े या बैठे-बैठे नींद आये । जिसके उदय से मनुष्य को चलते-चलते भी नींद आये । जिसके उदय में दान, तप आदि जनित यश फैले । अथवा एक दिशा में फैलनेवाली ख्याति को यश और सर्वदिशाओं में मिलने वाली ख्याति को कीर्ति कहते हैं। जिस कर्म के उदय के नाभि के ऊपर के अवयव शुभ हों । स्थान व्यवस्थित करने के उपरान्त उनको प्रमाणोपेत बनाना भी माना है । जिसके उदय से दूसरों का घात करने वाले शरीर के अवयव उत्पन्न हों, दाढ़ों में विष आदि हो । जिसके उदय से जीव कुछ जागता और कुछ सोता सा रहे । जिसके उदय से सोते में जीव के हाथ-पैर भी चलें और मह से लार भी गिरे । जिसके उदय से संसार में यश फैन और गुणों का कीर्तना । जिस कर्म के उदय से शरीर के अवयव रमणोय हों । प्रथम कर्मग्रम १८७

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